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त्योहारों की ग्राहकी से ही संभल सकता है कपड़ा उद्योग
मुंबई/कपड़ा बाजार में कारोबारी निराशा छँटने का समय नजदीक है। कपड़ों में ग्राहकी सुधरने की उम्मीदें बढ़ी है। इस बार देश में बारिश अच्छी होने से दीपावली के समय ग्रामीण ग्राहकी अच्छी रहने की संभावना है। हाजिर अभी मांग कमजोर है, परंतु गारमेण्ट कपड़ों में हलचलें सबसे अधिक है। भिवंडी में ग्रे सूती कपड़ों का उत्पादन कम होने से भाव बढ़ाकर बोला जा रहा है, परंतु बढे़ भाव पर कामकाज नहीं है। साउथ के ऑटोलूम पर बने ग्रे कपड़ों के भाव स्थिर है। निटेड कपड़ों का आयात घटने के बाद देशी निटेड कपड़ा उत्पादकों को लाभ होने लगा है। अगस्त महीने में त्योहारों की भरमार होने से स्थानीय ग्राहकी सुधरेगी परंतु हैवी अमेरिकी टैरिफ से निर्यात कम होगा।
टेक्सटाइल एवं गारमेण्ट निर्यात पर इसका तात्कालिक असर भाव प्रतिस्पर्धा में गिरावट के बतौर दिखाई दे सकता है। भारत के उत्पाद अब अमेरिकी बाजारों में महंगे हो जाएंगे। निर्यात ऑर्डर जो अभी तक एकतरफा बढ़ रहा था, वह कम होगा तो निर्यात में गिरावट आएगी। छोटी निर्यातक इकाईयों असर गंभीर हो सकता है। महाराष्ट्र लुधियाना, तिरूपुर और गुजरात जैसे निर्यात केंद्रांे के लिए यह गंभीर संकट जैसा होगा। डॉलर में हो रही गतिशीलता के कारण निर्यातकों को भाव तय करने में कठिनाई हो सकती है। आयात किया जाता कच्चा माल महंगा हो सकता है। कुल मिलाकर टेक्सटाइल एवं गारमेण्ट उद्योग के लिए इस टैरिफ से बचाव का एक मात्र उपाय उत्पाद मूल्यवर्धन है।
कपड़ा बाजार में त्योहारी गतिविधियां सुधरने के अनुमान पर भारी भरकम टेरिफ के कारण पानी फिर गया है। टेक्सटाइल एवं क्लोदिंग की निर्यात घटने के अनुमान से कपड़ा बाजार में फिनिश कपड़ों की बिकवाली का भारी दबाव रहने की संभावना बढ़ गई है। बिकवाली के भारी दबाव के कारण बाजार सुधरने की संभावना धुंधली लग रही है। यूके के साथ व्यापार करार होने के बाद कुछ राहत है, परंतु यूके का बाजार अमेरिका की तरह नही है। अमेरिका का बाजार बड़ा है और इस बाजार में निर्यात के लिए अभी तक अच्छी संभावनाएं बनी हुई थी, जो अब टैरिफ की भेंट चढ़ने के कगार पर पहुंच गया है। शर्र्टिंग में फैंसी की थोड़ी मांग निकली है, यार्न डाईड की मांग कम हो गई है।
अगस्त में रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, गणेशोत्सव जैसे त्योहारों की हल्की-फुल्की पूछताछ कपड़ा बाजार में है। सूटिंग और शर्टिंग की मांग स्थिर है। यद्यपि मिलों की सूटिंग एवं शर्टिंग में ऑफ सीजन में अच्छी बुकिंग मिली है। गारमेण्ट इकाइयों में भरपूर निर्यात ऑर्डर होने से गारमेण्ट कपड़ों की मांग पहले की तुलना में सुधरी है। यह कपड़ा बाजार के लिए गेमचेंजर हो सकता है। फैंसी साड़ियों में ग्राहकी बढ़ी है। डेªस मटेरियल की नये उत्पादों की ओर रूझान है। मिलों के फिनिश कपड़ों की कमी नहीं है। आगामी त्योहारी एवं वैवाहिक सीजन को ध्यान में रखते हुए विकसित नई वेराइटी के लिए मिलों को होलसेलरों, स्टॉकिस्टों और थोक व्यापारियों से अच्छा ऑर्डर मिलना शुरू हो गया है।
पावरलूम में कपड़ों का उत्पादन पहले से कुछ बेहतर है, फिर भी इकाइयों में अभी सूती ग्रे कपड़ों का उत्पादन 50 प्रतिशत की क्षमता से कम पर हो रहा है। रूई महंगा होने के बाद कॉटन यार्न पहले से ज्यादा मजबूत हो गया है। कॉटन यार्न के भाव बढे़ हैं, परंतु सूती एवं सिंथेटिक दोनों में उठाव अच्छा नहीं होने से वीवर्स उत्पादन नहीं बढ़ाना चाहते हैं। भिवंडी में प्लेन कपड़ों में मांग निकली है। वैश्विक बाजारों में मैनमेड फैब्रिक्स की मांग अधिक है, जबकि देश में कॉटन कपड़ों की खपत अधिक है। सिंथेटिक कपड़ों में कारोबार की अच्छी संभावना है। कपड़ा उद्योग को स्थानीय ग्राहकी के साथ निर्यात सपोर्ट मिल जाए तो कपड़ा बाजार का समीकरण बदलने में देरी नहीं लगेगी।
कम उत्पादन होने के कारण ग्रे सूती कपड़ों के भाव बढे़ हैं। सूती कैम्ब्रिक 60/60, 92/88 49 इंच पना ग्रे का भाव जो पहले 45 रूपये था, अब बढ़कर 50 रूपये हो गया है। सेमी का भाव 45 रूपये बोला जा रहा है। 40/60 72/72 48 इंच पना ग्रे का भाव बढ़कर 33.50 रूपये हो गया है। सूती मलमल का भाव 24.50 से 25 रूपये है। देशी निटेड कपड़ों के भाव तो नहीं बढे़ है, लेकिन आयात के कारण मरणासन्न हो गए निटेड उत्पादन केंद्रों पर आयात घटने के कारण रौनक आ गई है। सभी केंद्रांे पर अब पूरी क्षमता के साथ कपड़ों का उत्पादन हो रहा है। तिरूपुर में बनते देशी निटेड का प्रति किलो भाव 300 से लेकर 700 रूपये है, तो सिंथेटिक निटेड का भाव 125 से 210 रूपये तक है।
देश का कपड़ा उद्योग अमेरिकी टैरिफ से निराश है, कारण कि यह भारत के टेक्सटाइल एवं एपेरल निर्यात के लिए एक बड़ा बाजार है। चीन और बांग्लादेश का निर्यात अमेरिका में घटने के बाद भारत के निर्यात में जबरदस्त उछाल आया था। जनवरी से मई 2025 के दौरान अमेरिका में भारत का निर्यात बढ़कर 4.59 अरब डॉलर हो गया जो पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 13 प्रतिशत अधिक है। प्रतिस्पर्धी देशों पर भी इसी तरह का टैरिफ बढ़ा है। देश से अमेरिका में होते निर्यात पर गंभीर असर पड़ने की संभावना है। भारत अमेरिका में जिन कपड़ों का निर्यात करता है, उनमें कॉटन टीशर्ट, निटवियर इनरवियर, एक्टिव वियर और बच्चों के गारमेण्ट सबसे अधिक होते हैं।
अमेरिका में भारत से आयात पर टैरिफ लगाने के बाद 37 अरब अमेरिकी डॉलर के टेक्सटाइल एवं रेडीमेड कपड़ा उद्योग में हाय तौबा मचा है। भारत के टेक्सटाइल उद्योग को चीन, बांग्लादेश और वियतनाम जैसे प्रतिस्पर्धी देशों के साथ कड़ी प्रतिस्पर्धा कर अमेरिकी बाजार में झंडे गाड़ने का मौका हाथ से फिसलने का डर है। भारत के प्रतिस्पर्धी देशों जैसे कि बांग्लादेश, चीन, वियतनाम और कंबोडिया पर भारत की तुलना में अपेक्षा कम शुल्क लगाया गया है। भारत पर अतिरिक्त शुल्क के साथ कुल 50 प्रतिशत का एकतरफा बोझ पड़ने से टेक्सटाइल एवं एपेरल निर्यात पर सबसे खराब असर होेगा। यूके के साथ एफटीए है जो निर्यात के लिए अवसर उपलब्ध कराता है।