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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कई बार गौतम अडाणी के साथ फोटो खिंचवा चुकी हैं। रतन टाटा को कई बार मनाया लेकिन सिंगुर का भूत उनका पीछा ही नहीं छोड़ रहा। इकोनॉमिक्स को दरकिनार कर पॉलिटिक्स को हवा देने के कारण पश्चिम बंगाल कारोबारियों के लिए ‘नो गो’ ;जाना ठीक नहींद्ध मार्केट बनता जा रहा है। कम्यूनिस्ट शासन में रोजमर्रा की हड़ताल के साथ शुरुआत हुआ कंपनियों का पलायन पश्चिम बंगाल में अभी भी रुक नहीं पाया है। कॉरपोरेट मामलों के मंत्री हर्ष मल्होत्रा ने संसद को बताया कि पिछले पांच वर्ष में 2200 से अधिक कंपनियों ने अपने रजिस्टर्ड ऑफिस पश्चिम बंगाल से बाहर शिफ्ट किए हैं जिनमें से कम से कम 39 लिस्टेड कंपनियां हैं।
हाल ही जाने-माने इकोनॉमिस्ट संजीव सान्याल ने स्टेट जीडीपी वर्किंग पेपर में लिखा कि 1960-61 में देश के जीडीपी में पश्चिम बंगाल का शेयर 10.5 परसेंट था जो 2023-24 में घटकर केवल 5.6 परसेंट रह गया।
कंपनी अधिनियम कंपनियों को अपने पंजीकृत कार्यालयों को स्थानांतरित करने की अनुमति देता है। मंत्री ने कहा कि पिछले 5 वर्ष में जिन 2227 कंपनियों ने अपने रजिस्टर्ड ऑफिस पश्चिम बंगाल से बाहर शिफ्ट किए हैं उनमें मैन्युफैक्चरिंग, फाइनेंस, कमिशन एजेंट और ट्रेडिंग जैसे विभिन्न सैक्टर की कंपनियां शामिल हैं। बड़ी बात यह है कि 1970 के दशक तक रजिस्टर्ड कंपनियों की संख्या के लिहाज से महाराष्ट्र के बाद पश्चिम बंगाल दूसरे पायदान पर था। जो वर्ष 2021 तक आठवें स्थान पर खिसक गया था।