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उद्योग में अनिश्चितता
मुंबई/ देश के यार्न उद्योग पर इन दिनों कई प्रकार के दबाव हावी हैं। स्पिनिंग मिलों में उत्पादन फिलहाल जारी है, लेकिन बाजार की कमजोर मांग और अंतरराष्ट्रीय व्यापार नीतियों में आए बदलावों ने स्थिति को जटिल बना दिया है। रूई के भाव में हाल ही में गिरावट दर्ज की गई है, जिससे कच्चा माल सस्ता हुआ है। भारतीय कपास निगम की ओर से भी कम दरों पर कपास उपलब्ध होने के कारण मिलों को उत्पादन में कटौती करने की जरूरत नहीं पड़ी है। इसके बावजूद, कम मांग के चलते स्पिनिंग मिलों की परिचालन दर कमजोर बनी हुई है।
यार्न की इन्वेंटरी फिलहाल अधिक नहीं है, लेकिन अमेरिकी सरकार द्वारा हाल में लगाए गए भारी-भरकम टैरिफ ने देश के कपड़ा उद्योग में चिंता पैदा कर दी है। इस टैरिफ का असर वीविंग ;बुनाईद्ध उद्योग पर सीधा पड़ने की आशंका है। अगर वीविंग इकाइयों में ऑर्डर कम होते हैं, तो कपास आधारित और अन्य प्रकार के यार्न की मांग पर इसका सीधा असर होगा। यही कारण है कि स्पिनिंग मिलें फिलहाल मांग के अनुरूप ही उत्पादन कर रही हैं।
करीब पखवाड़ा पहले जब रूई के भाव में तेजी शुरू हुई थी, तब मिलों पर यार्न के दाम बढ़ाने का दबाव था। लेकिन घरेलू बाजार में कमजोर मांग के कारण उन्हें भाव बढ़ाने का कदम टालना पड़ा। अब हालात इस स्तर तक बदल गए हैं कि कपड़ा उद्योग का पूरा बाजार समीकरण उलट गया है। निर्यात में गिरावट आने से स्थानीय बाजारों में भी बिकवाली का दबाव बढ़ रहा है। कपड़ों का उत्पादन पहले से ही कम था, क्योंकि वीविंग इकाइयां पूरी क्षमता से उत्पादन नहीं कर रही थीं।
उद्योग में उम्मीद थी कि आने वाले समय में इसमें सुधार होगा और यार्न की मांग बढ़ेगी, लेकिन अमेरिकी टैरिफ के झटके ने इस उम्मीद को कमजोर कर दिया है। अब यार्न मिलों को बाजार की स्थिति को ध्यान में रखते हुए ही उत्पादन और मूल्य निर्धारण के फैसले लेने होंगे।
उद्योग के लिए एकमात्र राहत यह है कि कच्चा माल सस्ता हो रहा है और उसकी उपलब्धता पर्याप्त है, जिससे उत्पादन पर तत्काल रोक की संभावना नहीं है। हालांकि, आगे की स्थिति काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेगी कि त्योहारी सीजन में कपड़ों की मांग कैसी रहती है। अगर कपड़ा उत्पादन में तेजी आती है, तो यार्न की मांग में भी सुधार संभव है, अन्यथा मौजूदा दबाव जारी रह सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि कपड़ा निर्यात में सुधार यार्न उद्योग के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि हाल के महीनों में निर्यात मांग बढ़ने से यार्न की खपत में भी इजाफा हुआ था। लेकिन अब टैरिफ के कारण निर्यातकों और निर्माताओं को सतर्क रुख अपनाना होगा, जिससे उद्योग में निवेश और उत्पादन निर्णय पर भी असर पड़ सकता है। कुल मिलाकर, यार्न उद्योग आने वाले महीनों में बाजार के उतार-चढ़ाव और अंतरराष्ट्रीय व्यापार नीतियों के बीच संतुलन साधने की चुनौती का सामना करेगा।