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भारत की टेक्सटाइल इंडस्ट्री केवल कपड़े का उत्पादन भर नहीं करती, बल्कि यह देश की संस्कृति, रोजगार और निर्यात शक्ति का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है। आज यह क्षेत्र एक नए बदलाव और अवसरों के दौर से गुजर रहा है, जो आने वाले वर्षों में इसे वैश्विक मानचित्र पर और मजबूत स्थिति दिला सकता है।
सरकार द्वारा घोषित ‘पीएम मित्रा पार्क’ इस बदलाव की सबसे बड़ी नींव साबित हो रहे हैं। इन पार्कों का उद्देश्य पूरे वैल्यू चेन फाइबर से लेकर फैब्रिक और गारमेंट तक को एक ही छत के नीचे लाना है। इससे लागत कम होगी, प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ेगी और बड़े पैमाने पर निवेश को आकर्षित किया जा सकेगा। इन पार्कों में इन्फ्रास्ट्रक्चर, लॉजिस्टिक्स और टेक्नोलॉजी की उपलब्धता उद्योग को आधुनिक स्वरूप प्रदान करेगी।
भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वैश्विक निर्यात में इसका हिस्सा महज 4 प्रतिशत के आस-पास है, जबकि चीन का हिस्सा 30 प्रतिशत से ज्यादा है। बांग्लादेश और वियतनाम जैसे छोटे देश भी तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं। ऐसे में भारत को टेक्सटाइल और गारमेण्ट दोनों स्तर पर गुणवत्ता, सस्टेनेबिलिटी और समय पर डिलीवरी पर अधिक ध्यान देना होगा।
एक और अहम पहलू है ग्रीन टेक्सटाइल। आज दुनिया पर्यावरण- अनुकूल और सस्टेनेबल फैब्रिक की ओर बढ़ रही है। यूरोप और अमेरिका के खरीदार अब सिर्फ सस्ती कीमत नहीं, बल्कि इको-फ्रेंडली प्रोडक्शन की मांग कर रहे हैं। भारत में ऑर्गेनिक कॉटन, रिसायकल्ड यार्न और पानी-बचाने वाली डाईंग तकनीकों को अपनाने की शुरुआत हो चुकी है, लेकिन इसे बड़े पैमाने पर लागू करने की आवश्यकता है।
रोज़गार की दृष्टि से भी टेक्सटाइल सेक्टर बेहद अहम है। यह कृषि के बाद सबसे बड़ा रोजगार प्रदाता है। ‘पीएम मित्रा पार्क’ जैसे प्रोजेक्ट्स से लाखों नए रोजगार सृजित होने की उम्मीद है, खासकर ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में। यह न सिर्फ उद्योग के लिए, बल्कि सामाजिक संतुलन के लिए भी महत्वपूर्ण होगा।
हालांकि, चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं बिजली और पानी जैसी आधारभूत सुविधाओं की कमी, आयातित यार्न से प्रतिस्पर्धा, और एमएसएमई यूनिट्स की वित्तीय दिक्कतें अभी भी उद्योग को पीछे खींच रही हैं। यदि इन पर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो संभावनाओं के बावजूद भारत पिछड़ सकता है।
कुल मिलाकर, भारत का टेक्सटाइल सेक्टर आज परंपरा और आधुनिकता के संगम पर खड़ा है। यदि सरकार, उद्योग और उद्यमी मिलकर सही दिशा में आगे बढ़ें, तो आने वाले दशक में भारत केवल घरेलू बाज़ार का ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी टेक्सटाइल और गारमेण्ट सेक्टर का नया चेहरा बनकर उभर सकता है।
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