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भारतीय टेक्सटाइल का ग्लोबल शिफ्ट कृ एशिया से यूरोप-अमेरिका तक बढ़ती नई मांग
By Textile Mirror - 16-12-2025

भारतीय टेक्सटाइल उद्योग इस समय एक महत्वपूर्ण परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। दशकों तक एशियाई देशोंकृविशेषकर चीन और दक्षिण-पूर्व एशियाकृपर केंद्रित रहने वाला वैश्विक बाज़ार अब धीरे-धीरे यूरोप और अमेरिका की ओर पुनर्संतुलित हो रहा है। इस बदलाव ने भारतीय उद्योग के लिए नए अवसरों के विशाल द्वार खोल दिए हैं। यह केवल व्यापार का उछाल नहीं, बल्कि वैश्विक सप्लाई चेन के पुनर्गठन का परिणाम है, जिसमें भारत तेजी से एक विश्वसनीय और प्रमुख विकल्प बन रहा है।
सबसे बड़ी भूमिका निभा रही है वैश्विक कंपनियों की ‘चायना$1’ रणनीति। चीन में बढ़ती उत्पादन लागत, भू-राजनीतिक तनाव और सप्लाई रुकावटों ने अंतरराष्ट्रीय ब्रांड्स को विकल्प खोजने पर मजबूर किया है। भारत की मजबूत उत्पादन क्षमता, कुशल श्रमिक बल, स्थिर आर्थिक माहौल और विविध उत्पाद रेंज ने उसे अंतरराष्ट्रीय खरीदारों का पसंदीदा सोर्सिंग डेस्टिनेशन बना दिया है। यही वजह है कि कई अमेरिकी और यूरोपीय ब्रांड भारत के साथ दीर्घकालिक साझेदारी की ओर बढ़ रहे हैं।
यूरोपियन यूनियन और यूनाइटेड किंगडम के साथ प्रस्तावित फ्री ट्रेड एग्रीमेंट इस बदलाव को और गति दे सकते हैं। आयात शुल्कों में संभावित कटौती से भारतीय रेडीमेड गारमेंट, होम टेक्सटाइल और फैब्रिक की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ेगी। विशेषकर तौलिए, बेडशीट, होम डेकोर फैब्रिक, डेनिम और निटवियर जैसे सेगमेंट पहले से ही यूरोप-अमेरिका में अच्छी पकड़ बना चुके हैं, जिन्हें आने वाले वर्षों में और भी बड़ा विस्तार मिलने की संभावना है।
भारत की सबसे बड़ी मजबूती आज सस्टेनेबल उत्पादन में बढ़ती प्रतिब(ता है। यूरोप और अमेरिका अब पर्यावरण-अनुकूल उत्पादों को प्राथमिकता देते हैं। भारतीय मिलें रीसाइकल्ड यार्न, ऑर्गेनिक कॉटन, रिन्यूएबल एनर्जी, ज़ीरो-लिक्विड डिस्चार्ज और ट्रेसिबिलिटी सिस्टम पर तेजी से निवेश कर रही हैं। इससे भारत कम लागत वाला ही नहीं, बल्कि जिम्मेदार और भरोसेमंद उत्पादन केंद्र के रूप में उभर रहा है।
हालांकि चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं। कच्चे मालकृविशेषकर कॉटनकृकी कीमतों में उतार-चढ़ाव, उच्च लॉजिस्टिक लागत, शिपिंग देरी और एमएसएमई यूनिटों में टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन की कमी भारत को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पीछे कर सकती है। दूसरी ओर बांग्लादेश, वियतनाम और तुर्किये ने यूरोप-अमेरिका में अपनी पकड़ मजबूत की है, जिससे मुकाबला कठिन है। भारत को उत्पादन लागत घटाने, तेजी से डिलीवरी और गुणवत्ता मानकों को और मजबूत करने पर काम करना होगा।
इसके बावजूद अवसर पहले से कहीं अधिक बड़े और स्पष्ट हैं। वैश्विक खरीदार अब विश्वसनीय, स्थिर और दीर्घकालिक पार्टनर की तलाश में हैंकृऔर भारत इस भूमिका को निभाने के लिए पूर्ण रूप से तैयार है। यदि सरकार और उद्योग मिलकर नीति सुधार, कौशल विकास और आधुनिक तकनीक पर ध्यान दें, तो आने वाले वर्षों में भारत न केवल एशिया का बल्कि यूरोप-अमेरिका का भी अग्रणी टेक्सटाइल हब बन सकता है।
यह बदलाव भारत के लिए सिर्फ बाज़ार का विस्तार नहीं, बल्कि वैश्विक नेतृत्व की दिशा में बढ़ता हुआ निर्णायक कदम है।

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