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नई दिल्ली/भारत का टेक्सटाइल उद्योग, जो देश की अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख स्तंभ है, वर्तमान में परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। वर्ष 2025 के पहले दो महीनों में जहां वैश्विक अनिश्चितताओं और निर्यात में गिरावट की चुनौतियाँ रहीं, वहीं घरेलू मांग, तकनीकी नवाचार और सस्टेनेबल प्रोडक्शन की दिशा में मजबूत प्रगति भी देखने को मिली।
निर्यात में गिरावट, लेकिन नए बाजारों की खोज जारी
यूरोप और अमेरिका में मंदी के कारण अप्रैल-मई 2025 के दौरान भारत के कपड़ा निर्यात में 6-8 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। हालांकि, भारत की टेक्सटाइल कंपनियाँ अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और मध्य एशिया जैसे उभरते बाजारों में नए व्यापार संबंध बना रही हैं।
फिक्की और टेक्सप्रोसिल जैसे संगठनों ने निर्यातकों को नए बाजारों तक पहुँचाने के लिए व्यापार मिशनों और बी2बी प्लेटफॉर्म्स की योजना बनाई है।
घरेलू बाजार में मांग का स्थिर विस्तार
रेडीमेड गारमेण्ट्स, होम टेक्सटाइल्स और फर्निशिंग सेगमेंट में घरेलू उपभोक्ता मांग में 10 प्रतिशत तक की वृ(ि देखी गई है।
ई-कॉमर्स और डी2सी ब्रांड्स का तेज़ी से बढ़ना इसका एक बड़ा कारण है। त्योहारी सीज़न की तैयारी में कई कंपनियों ने पहले ही इन्वेंट्री उत्पादन बढ़ा दिया है।
पीएलआई स्कीम और सरकार का समर्थन
भारत सरकार द्वारा पीएलआई योजना के तहत दूसरी किश्त जारी की गई, जिससे टेक्निकल टेक्सटाइल और मैनमेड फाइबर उद्योग को बड़ा प्रोत्साहन मिला है। इसके साथ ही, ग्रीन फैब्रिक मिशन और इंडिया टेक्सटाइल पार्क जैसी योजनाएँ निवेशकों को आकर्षित कर रही हैं।
सस्टेनेबल टेक्सटाइल की ओर झुकाव
अरविन्द, विशाल फैब्रिक्स, रेमण्ड और वेलस्पन जैसी कंपनियाँ रिसायकल फैब्रिक, जीरो लिक्विड डिस्चार्ज टेक्नोलॉजी और जैविक कपास पर आधारित उत्पादों को बाजार में ला रही हैं। यह परिवर्तन भारत को ग्लोबल सस्टेनेबल फैशन सप्लाई चेन में एक प्रमुख खिलाड़ी बनाने की दिशा में बड़ा कदम है।
भविष्य की राह
हालांकि अंतरराष्ट्रीय चुनौतियाँ बनी हुई हैं, पर भारत का टेक्सटाइल उद्योग डिजिटलीकरण, नवाचार और स्थिरता के माध्यम से आत्मनिर्भरता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार हो रहा है।
राज्यवार टेक्सटाइल पॉलिसियों पर एक नजर . . .
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