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ब्लैंडेड फैब्रिक्स की मांग निखरी 
By Textile Mirror - 03-12-2025

कॉटन कपड़ों की बिक्री में स्थिरता 
मुंबई/ थोक कपडा बाजार में कारोबार में गति नहीं है। ग्राहकी में करेंट नहीं है। बाजार में ग्राहकी की प्रतीक्षा बढ़ी है। कारोबार व्यापारियों की कसौटी पर खरा नहीं उतर रहा है। दीपावली के बाद कपड़ों में कारोबार अच्छा होने की उम्मीद व्यक्त की गई थी। करीब एकाध महीने बीतने के बाद भी कपडा बाजार में ग्राहकी का ग्राफ बढ़ने के बदले स्थिर रहा है। वैवाहिक सीजन के कारण कपड़ों में खुदरा ग्राहकी अच्छी रही है। सूटिंग, शर्टिंग, उपहार के आइटमों, साड़ी और डेªस मटेरियल, भिन्न-भिन्न प्रिंटेड कपडों सहित उन सभी किस्म के कपड़ों में ग्राहकी दिखाई दे रही है, जिसकी इन दिनों में विशेष मांग रहती है। टेक्सटाइल का निर्यात कमजोर है। कपड़ों का उत्पादन घटा है। 
विंटर की हैवी क्वालिटी कपड़ों में कारोबार कम और स्टॉक भी कम है। वीविंग इकाइयों में कामकाज घटा है। भिवंडी में कपड़ों का उत्पादन आज भी 50 प्रतिशत से कम है। लूमों पर कारीगरों की कमी है। कपड़ों का उत्पादन कम होने के बावजूद तैयार ग्रे कपड़ों का उठाव जैसा होना चाहिए वैसा नहीं हो रहा है। स्कूल यूनिफॉर्म की सीजन सामने है। दिसम्बर महीने से इसकी तैयारियां जोर पकड़ सकती है। प्रोसेसिंग इकाइयां पूरी क्षमता के साथ नहीं चल रही है। कॉटन कपड़ों के बदले ब्लैंडेड कपड़ों में अब कामकाज बढ़ रहा है। रूई सस्ती है, फिर भी कॉटन यार्न टाइट लग रहा है, जबकि बाजार में कॉटन यार्न की मांग नहीं बढ़ी है, दूसरी ओर सिंथेटिक यार्न के भाव स्थिर हो गए है। 
कपड़ा बाजार में पुरानी उधारी लौट रही है। हकीकत में कपड़ों की जब सबसे अधिक बिक्री होती है, ऐसी वैवाहिक सीजन भी शुरू हो चुकी है, फिर भी थोक कपड़ों में कारोबार पटरी पर नहीं लौट सका है। काटन ग्रे कपडों के भाव कुछ सुधरे है, परंतु इस भाव पर लेवाली नहीं है। जानकारों का कहना है कि बाजार में फैंसी और विंटर सीजन के हैवी क्वालिटी कपड़ों का बहुत अधिक स्टॉक नहीं है।। अभी कपड़ों में खुदरा स्तर पर जो कारोबार हो रहा है, वह अधिकतर सीजन में चलने वाले कपड़ों की है। सूटिंग एवं शर्टिंग की बिक्री थोड़ी सुधरी है, परंतु यह सीजन जैसा नहीं है। गारमेण्टर्स की शर्टिंग की मांग अधिक नहीं है। गारमेण्ट कारखानों में कामकाज फिर से जोर पकड़ने लगा है।
साड़ियों के साथ लेडीज सूट्स में वैवाहिक सीजन की खुदरा ग्राहकी का समर्थन जोरदार है। आकर्षक डिजाइनों और नई रेंज की साड़ियों तथा सलवार एवं सूट के कपड़ों में बिक्री बढ़ने से कारोबार में उत्साह है। जोरदार मांग के कारण सभी रेंज की साड़ियों में अच्छा कारोबार हो रहा है। कारोबारियों को ऐसी ग्राहकी आने वाले दिनों में रहने की उम्मीद है। पेटीकोट फैब्रिक की मांग बढ़ी है। ब्लाउज मटेरियल में फैंसी वेराइटी की मांग है। अब सिंथेटिक और फैंसी साड़ियों के साथ ब्लाउज पीस अटैच होने से रूबिया की मांग में कोई बड़ा सुधार नहीं हो रहा है। पोलिएस्टर मिक्स ब्लैंडेड फैब्रिक्स की मांग में जरूर बढ़ रही है और कॉटन कपड़ों की मांग में स्थिरता है। 
कपड़ा उत्पादकों ने अब कॉटन के साथ विविध ब्लैंडेड कपड़ों के उत्पादन और विपणन पर ध्यान देना शुरू कर दिया है। ग्राहकों की जरूरतों को पूरा करने और नये उत्पादों को निरंतर बाजारों में पेष करने की कोशिश फलीभूत होती नजर आ रही है। यही कारण है कि भारतीय बाजारों के साथ वैश्विक बाजारों में विस्कोस, लाइक्रा और लिनन ब्लैंडेड कपड़ों की बढ़ रही मांग के कारण ऐसे कपड़ों की बिक्री बढ़ाने के लिए भारतीय कपडा मैन्युफैक्चरर्स को एक बड़ा बाजार मिला है। देश में पहले से ही कई मिलों में लिनन ब्लैंड और लिनन लुक्स कपड़ों का उत्पादन हो रहा है। भारत लिनन यार्न और फैब्रिक्स का बड़ा आयातक है। देश में घरेलू उत्पादन की संभावनाएं मौजूद है। 
टेक्सटाइल उद्योग का वैश्विक स्तर पर विस्तार हो रहा है। विशेषकर टेक्निकल टेक्सटाइल का निर्यात टॉप 10 बाजारों के अलावा अब कनाडा, सउदी अरब, रूस, मोरक्को, इजराइल, ओमान, जापान, तंजानियां, पेरू, स्विटजरलैंड, अर्जेंटीना इत्यादि देशों में बढ़ रहा है। यूके में निर्यात दोगुना करने की संभावना है। अब बाजार का विविधीकरण करने की जरूरत है। लैटिन अमेरिका, अफ्रीका, सेंट्रल एशिया, मीडिल ईस्ट जैसे देशों में निर्यात बढा़ने पर जोर दिया जा रहा है। अप्रैल से अगस्त 2025 के दौरान टेक्निकल टेक्सटाइल का निर्यात 143.12 करोड़ अमेरिकी डॉलर था। जो पूर्व वर्ष की समान अवधि में 137.96 करोड़ रूपये था। इस तरह इसमें 3.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी नजर आ रही है। 
कपड़ा और गारमेण्ट का निर्यात कमजोर है। अमेरिका भारत के लिए एक बड़ा बाजार है। यदि अमेरिका भारत पर पहले की तरह 25 प्रतिशत टैरिफ कर देता है, तो निर्यात में वृ(ि होगी। लेकिन टैरिफ की दर 20 प्रतिशत से नीचे रहे तो भारत को बडे़ ऑर्डर मिल सकते है। भारत और अमेरिका के बीच कुछ ही समय में टैरिफ पर कोई समाधान होने की संभावना दिखाई दे रही है। ऐसा होने पर कपड़ा उद्योग को बड़ा लाभ होगा। जब से भारत पर हैवी टैरिफ लादा गया है तब से यह क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित हुआ है। भारतीय निर्यातकों ने इस बीच दूसरे वैकल्पिक बाजारों को खोजा और उन बाजारों में निर्यात किया है, ताकि अमेरिकी बाजार के निर्यात की कमी इन बाजारों से दूर की जा सके। 
 

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