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मुंबई/ त्योहारों के कारण चुनिंदा आइटमों में थोड़ी बहुत हलचल को छोड़कर कपडों में कारोबार नीरस है। बाजार में सन्नाटा है। निर्यात ऑर्डर घट गया है। यार्न से लेकर कपड़ों के उत्पादन तक हाल असमंजस की स्थिति है। कपड़ों में बिकवाली का दबाव है, जबकि लूमों पर कपड़ों का उत्पादन सीमित दायरे में है। जीएसटी कौंसिल की सितम्बर के पहले सप्ताह में होने जा रही बैठक में कपड़ों की स्लैब दरों में बदलाव किए जाने और 30 सितम्बर तक रूई के आयात पर लगते 11 प्रतिशत आयात शुल्क को समाप्त कर देने से रूई और सस्ती होने से कॉटन यार्न की लागत कम होगी। कपड़ों की लागत पर असर होने की संभावना से कपड़ों में उठाव अभी से कम हो गया है।
भिवंडी में पावरलूम इकाइयों में ग्रे कपड़ों का उत्पादन कम हो गया है। लूमों पर कपड़ों का उत्पादन क्षमता से कम है, फिर भी तैयार कपड़ों की मांग नहीं बढ़ रही है। प्लेन क्वालिटी में हल्का मूवमेंट है। छोटे पना में भी कामकाज हो रहा है। उत्पादन भले कम हो गया है, परंतु जिसकी जरूरत है, वे सभी वेराइटी आसानी से मिल रही है। भिवंडी की तुलना में साउथ का ग्रे बाजार कम उत्पादन होने पर स्थिर और मजबूत है। प्रिंटिंग ग्रे कपड़ों का उत्पादन कम है। कोम्ब्ड क्वालिटी के भाव स्थिर हो गए है। स्पिनिंग एवं वीविंग इकाइयों में कामकाज कम हो रहा है। निर्यात में रूकावट और कॉटन यार्न के भाव घटने की संभावना से कपड़ों का उत्पादन नहीं बढ़ाने की नीति अपनाई है।
गारमेण्ट इकाइयों में शर्टिंग की मांग निकली है। त्यौहारी ग्राहकी, विंटर एवं वैवाहिक सीजन के लिए फैंसी शर्टिंग में कामकाज थोड़ा बढ़ा है। यार्न डाईड शर्टिंग की मांग कम है। यार्न डाईड शर्टिंग में हो रहा अच्छा कारोबार अचानक कम हो गया, जबकि पीस डाईड में मिलों की नई वेराइटी में डिमांड है। सूटिंग एवं शर्टिंग की अच्छी मांग बाजार में रहती है तो पोकेटिंग कपड़ों की मांग में भी सुधार होता, लेकिन सूटिंग मंे कारोबार अच्छा नहीं चल रहा है। एक अच्छी ग्राहकी का इंतजार है। जबकि बाजारों में त्योहारों एवं आगे की सीजन को ध्यान में रखते हुए मिलों में डेवलपमेंट बडे़ स्तर पर किया गया है। जींस की मांग में जरूर सुधरी है। जींस के खरीदार तेजी से बढ़ रहे है।
विंटर सीजन को ध्यान में रखते हुए कुछ फैंसी वेराइटी जैसे रेयॉन, मोडल बेस कपड़ों की मांग निकलने से भाव में थोडे़ सुधरे है। सूरत में बने इन कपडों की मांग ठीक है। इसी तरह कॉटन साटीन एवं कॉटन ट्विल, लाइनिंग इत्यादि की ओर बाजार का रूख सकारात्मक है। लायक्रा के साथ इस तरह के कपड़ों का उपयोग लेडीज वियर, वेस्टर्न वियर और किड्स वियर का उत्पादन करने मंे किया जाता है। चूंकि इस सेंग्मेंट कारोबार अच्छा होने के साथ रिटेलर्स मार्जिन भी अच्छी होने से इस तरह के कपड़ों में गारमेण्टरों की मांग अनवरत है, चाहे कुछ कम अथवा ज्यादा। कपड़ों में लगातार अन्वेषण तथा बाजार मांग को ध्यान में रखकर उत्पादन पर जोर देकर ही कारोबार हो सकता है।
रक्षाबंधन के समय बाजारों में साड़ियों के साथ डेªस मटेरियल में निकली मांग धीरे-धीरे बढ़ रही है। आमतौर सूरत में बनी फैंसी साड़ियों में ही कारोबार अधिक होता है। इसमें मध्यम कीमत से लेकर उंची कीमत तक की साड़िया शामिल है। कुछ में तो ब्राण्ड नाम से कारोबार होने लगा है। इस तरह की साड़ियो में साटीन, जार्जेट, क्रेप और सिफोन जैसी क्वालिटी की मांग है। इन पर प्रिंट आसान एवं सरल होने से इस तरह की क्वालिटी चल रही है। डेªस मटेरियल में अक्टूबर से जनवरी के दौरान हैवी क्वालिटी कपड़ों की मांग अधिक होती है। इसलिए डेªस मटेरियल की ऐसी वेराइटी की ओर बाजार और ग्राहकों का झुकाव बढ़ रहा है। बाजार में माल आसानी से मिल रहा है।
भारत से अमेरिका में आयात किए जाते टेक्सटाइल एवं एपरल आइटमों पर 25 प्रतिशत टैरिफ की दरें लागू हो चुकी है। इसके अलावा अतिरिक्त 25 प्रतिशत टैरिफ 27 अगस्त से लागू हो सकता है। अमेरिकी प्रतिनिधि का भारत दौरा टल गया है। इसलिए बातचीत अधर में लटक गई है। एक तरह से भारत पर दबाव बनाया जा रहा है। कुल 50 प्रतिशत टैरिफ के कारण भारत का माल अमेरिका में महंगा हो जाएगा। निर्यातकों की प्रतिस्पर्धा घट जाएगी। अमेरिका से निर्यात ऑर्डर घटने लगा है। अमेरिकी आयातक माल नहीं भेजने को कह रहे है। निर्यात घटने के कारण महाराष्ट्र, गुजरात, लुधियाना और तिरूपुर जैसे निर्यात केंद्रांे के लिए गंभीर संकट की घंटी बजनी शुरू हो गई है।
मौजूदा दौर में अमेरिकी भारी भरकम टैरिफ संकट में फंसे टेक्सटाइल एवं क्लोदिंग उद्योग को केंद्र सरकार की ओर से कामचलाऊ राहत दिया गया है। रूई आयात पर लगते 11 प्रतिषत आयात सशुल्क को 30 सितम्बर तक समाप्त कर दिया गया है, इससे टेक्सटाइल वैल्यू चैन-यार्न, गारमेण्ट और मेडअप्स को लागतें संभालने में मदद मिल सकती है। भारी भरकम टैरिफ के बाद अमेरिका का बाजार भारत के लिए लगभग बंद जैसा हो गया है। निर्यात स्थगित होने से कपड़ा उद्योग में गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो सकती है। अमेरिका भारत के कपड़ों का एक मुख्य खरीददार है। यदि बाजार खोना पड़ता है तो फिर कपड़ा उद्योग को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
अमेरिका के साथ कपड़ों का कारोबार करना कठिन हो गया है। उद्योग संगठन इस मामले में केंद्र सरकार से हस्तक्षेप करने का अनुरोध कर रहे है। टैरिफ का प्रभाव करने के लिए निर्यात प्रोत्साहन की जरूरत है। इसके साथ ही निर्यात बढ़ाने के लिए दूसरे देशों की ओर कदम बढ़ाए जा सके। यार्न उत्पादन से लेकर उन सभी इकाइयों तक इसका असर होने की संभावना है, जो कपड़ों के निर्यात कारोबार से जुड़ी है। भारत के निर्यातकों के लिए अमेरिका के विकल्प के तौर पर यूरोप तथा पश्चिम एशिया तथा लैटिन अमेरिका संभावित बाजार है, जहां निर्यात की संभावना है, लेकिन इन बाजारों में पैर जमाने के लिए कुछ समय लग सकता है, तत्काल निर्यात बढ़ाना संभव नहीं है।
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