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तमिलनाडु में पारंपरिक पावरलूम इकाइयों के आधुनिकीकरण की ओर बड़ा कदम
By Textile Mirror - 03-07-2025

ध्वनि प्रदूषण और उत्पादन दक्षता को लेकर सरकार और उद्योग जगत का संयुक्त प्रयास
तमिलनाडु सरकार और टेक्सटाइल उद्योग से जुड़े प्रमुख संगठनों ने मिलकर राज्य की पारंपरिक पावरलूम इकाइयों के आधुनिकीकरण की दिशा में एक अहम पहल शुरू की है। यह कदम तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड  की उस रिपोर्ट के बाद आया है जिसमें बताया गया कि पारंपरिक शटल लूम्स अनुमेय ध्वनि स्तरों से कहीं अधिक शोर उत्पन्न कर रहे हैं, जिससे स्थानीय श्रमिकों और समुदायों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
प्रमुख बिंदु-
- टीएनपीसीबी की जांच में पाया गया कि अधिकांश पारंपरिक लूम इकाइयों से उत्पन्न शोर का स्तर 85 डेसिबल से अधिक था, जो कि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
- आधुनिकीकरण के लिए शटल-लेस रैपियर लूम्स को अपनाने की सिफारिश की गई है, जो न केवल कम शोर उत्पन्न करते हैं बल्कि उत्पादन क्षमता भी बढ़ाते हैं।
- इकाइयों को ध्वनि रोधी के उपाय अपनाने और मशीनरी के नवीनीकरण हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करने के विकल्पों पर भी विचार किया जा रहा है।
- तमिलनाडु हैंडलूम और टेक्सटाइल विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘‘हम इस परिवर्तन को केवल तकनीकी बदलाव नहीं, बल्कि श्रमिकों के स्वास्थ्य और भविष्य की टिकाऊ टेक्सटाइल उत्पादन प्रणाली की दिशा में एक निर्णायक कदम मानते हैं।’’
चुनौतियाँ भी हैं सामने-
-प्रत्येक मशीन की अनुमानित लागत 4 लाख से 7 लाख रुपये के बीच है, जिससे छोटे उद्यमियों के लिए निवेश करना कठिन हो सकता है।
-प्रशिक्षित तकनीशियनों की कमी और नियमित रख-रखाव की आवश्यकताओं को भी गंभीरता से संबोधित किया जाना आवश्यक है।
आगामी योजना-
राज्य सरकार ने संकेत दिए हैं कि वे एमएसएमई इकाइयों को सब्सिडी और ब्याज मुक्त )ण जैसी योजनाओं के ज़रिये इस बदलाव में मदद करेंगे। इसके अतिरिक्त, टेक्सटाइल इंडस्ट्री एसोसिएशनों के साथ मिलकर एक ‘टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन कलस्टर प्रोग्राम’ की भी योजना बनाई जा रही है।
यह पहल न केवल तमिलनाडु को भारत के अग्रणी टेक्सटाइल राज्यों में और मजबूती देगी, बल्कि इसे एक ‘ग्रीन और सस्टेनेबल टेक्सटाइल मॉडल’ के रूप में भी स्थापित करेगी।

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