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भारतीय वस्त्र निर्यात पर राहत और वास्तविकता !
भारतीय वस्त्र उद्योग, विशेषकर कपास और यार्न आधारित उत्पादन, आज वैश्विक प्रतिस्पर्धा और बदलते भू-राजनीतिक समीकरणों के बीच सबसे बड़ी परीक्षा से गुजर रहा है। हाल ही में अमेरिका द्वारा भारतीय वस्त्र निर्यात पर 50 प्रतिशत तक टैरिफ लगा दिया गया है। यह कदम उस समय आया है जब भारत पहले से ही निर्यात में मंदी, बढ़ती लागत और वैश्विक मांग में गिरावट जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है। इस झटके का सीधा असर कपास यार्न खरीद में 50 प्रतिशत गिरावट और निर्यातकों की रद्द होती डील्स में देखा जा सकता है।
सरकार ने तात्कालिक राहत के तौर पर 19 अगस्त से 30 सितंबर 2025 तक कपास आयात पर 11 प्रतिशत शुल्क माफ करने की घोषणा की है। उद्देश्य स्पष्ट हैकृकच्चे माल की उपलब्धता सस्ती करना ताकि उत्पादन लागत घटे और घरेलू उद्योग को थोड़ी सांस लेने की जगह मिले। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह कदम वास्तव में उस व्यापक संकट का समाधान है जो अमेरिकी टैरिफ ने खड़ा कर दिया है?
यदि आर्थिक दृष्टिकोण से देखें तो भारतीय वस्त्र उद्योग की एक बड़ी हिस्सेदारी अमेरिकी बाजार पर निर्भर है। अकेले अमेरिका में भारत का लगभग 25 प्रतिशत तैयार वस्त्र और टेरी टॉवेल निर्यात होता है। जब 100 रुपए का सोलापुरी टॉवेल वहां 163 रुपए में बिकेगा, तो स्वाभाविक है कि अमेरिकी खरीददार अन्य देशोंकृजैसे बांग्लादेश, वियतनाम या चीनकृकी ओर रुख करेंगे। ऐसे में भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धा कमजोर होना तय है।
सरकारी राहत को ‘तात्कालिक ऑक्सीजन’ कहा जा सकता है। आयात शुल्क हटाने से उद्योग को कच्चा माल सस्ता मिल सकता है, जिससे उत्पादन की गति कुछ हद तक बनाए रखना संभव होगा। लेकिन यह छूट मात्र डेढ़ महीने के लिए है। क्या इतने छोटे समय में उद्योग अपनी खोई हुई पकड़ वापस पा लेगा? क्या यह राहत अमेरिकी टैरिफ के स्थायी असर को निष्प्रभावी कर सकती है? शायद नहीं।
यहां ज़रूरत है एक दीर्घकालीन और रणनीतिक नीति की। सबसे पहले भारत को नए निर्यात बाजारों की तलाश करनी होगी। यूरोप, लैटिन अमेरिका और अफ्रीकी देशों में वस्त्र निर्यात की संभावनाएं बढ़ सकती हैं। दूसरा, ‘मेक इन इंडिया’ को वस्त्र क्षेत्र में सार्थक बनाने के लिए सरकार को तकनीकी आधुनिकीकरण, उत्पादन में विविधीकरण और मैन-मेड फाइबर जैसे विकल्पों पर अधिक जोर देना होगा। तीसरा, अमेरिका और यूरोप जैसे प्रमुख बाजारों के साथ द्विपक्षीय समझौते को तेज़ी से आगे बढ़ाना होगा ताकि भारत को शुल्क राहत मिल सके।
यह भी नहीं भूलना चाहिए कि इस संकट का सामाजिक असर भी गहरा है। सोलापुर जैसे केंद्रों में हजारों मजदूरों की रोज़ी-रोटी इन निर्यातों पर निर्भर है। अगर ऑर्डर लगातार कैंसिल होते रहे तो न सिर्फ उद्योग बल्कि रोजगार का बड़ा हिस्सा भी संकट में पड़ सकता है।
कुल मिलाकर कपास आयात शुल्क की माफी एक तात्कालिक राहत है, लेकिन इसे समाधान मानना भूल होगी। वास्तविक समाधान तभी संभव है जब भारत अपने वस्त्र उद्योग को प्रतिस्पर्धात्मक, विविधीकृत और वैश्विक स्तर पर लचीला बनाए। टैरिफ वार ने एक चेतावनी दी हैकृसिर्फ राहत से आगे बढ़कर स्थायी सुधार और रणनीतिक तैयारी ही भारतीय वस्त्र उद्योग को बचाव से सफलता की राह पर ले जा सकती है।
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