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टेक्सटाइल पर्व 2.0
By Textile Mirror - 16-12-2025

विकसित भारत 2047 की दिशा में भारतीय वस्त्र उद्योग की रणनीति, नवाचार और सतत विकास पर गहन चर्चा
सूरत/ दक्षिण गुजरात चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के जीएफआरआरसी ;ग्लोबल फैब्रिक रिसोर्स एंड रिसर्च सेंटरद्ध द्वारा 1 से 8 दिसंबर तक नानपुरा, सूरत में आयोजित टेक्सटाइल पर्व 2.0 ज्ञान, नवाचार, तकनीक और भविष्य की रणनीति का अनूठा संगम बन गया है। सप्ताहभर चलने वाले इस महोत्सव में देश के शीर्ष विशेषज्ञ वस्त्र उद्योग के बदलते स्वरूप, वैश्विक प्रतिस्पर्धा, सतत उत्पादन और तकनीकी वस्त्रों के भविष्य पर उद्यमियों को दिशा दे रहे हैं।
विकसित भारत 2047 में टेक्सटाइल उद्योग की भूमिका कृ वैज्ञानिक विश्लेषण- मुख्य सत्र में अहमदाबाद टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज रिसर्च एसोसिएशन ;एटीआरएद्ध के अध्यक्ष डा. अश्विन ठक्कर ने भारतीय टेक्सटाइल उद्योग की वर्तमान स्थिति और 2047 तक भारत की वैश्विक स्थिति को मजबूत करने में उद्योग की निर्णायक भूमिका पर विस्तृत व्याख्यान दिया।
चैंबर के अध्यक्ष निखिल मद्रासी ने कहा कि सूरत विश्व का प्रमुख पोलिएस्टर हब है और आगे आने वाला युग तकनीकी नवाचार और ज्ञान-आधारित विकास का है, इसलिए इस वर्ष देशभर के विशेषज्ञों को शामिल किया गया है।
डा. ठक्कर ने बताया कि पोलिएस्टर आने के बाद सूरत ने जिस गति से तकनीकी परिवर्तन अपनाए हैं, वह अद्भुत है। उन्होंने स्पष्ट किया कि पहले चीन भारतीय यार्न लेकर उसी कीमत पर तैयार कपड़ा वापस बेच देता था, जबकि आज भारत अपनी संपूर्ण वैल्यू चेन स्वयं तैयार कर रहा है, जिससे देश की विदेशी मुद्रा और प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता बढ़ी है।
उन्होंने यह भी बताया कि भारत पोलिएस्टर उत्पादन में दुनिया का अग्रणी देश है, लेकिन तकनीकी वस्त्रों में अभी विशाल अवसर उपलब्ध हैं। स्पोर्ट्स वियर, मेडिकल टेक्सटाइल, होम टेक्सटाइल, ऑटोमोबाइल टेक्सटाइल जैसी श्रेणियों में वैज्ञानिक और टिकाऊ फाइबर की मांग बढ़ रही है। उन्होंने वैज्ञानिक कारणों के आधार पर समझाया कि स्पोर्ट्स वियर में कपास की बजाय पोलिएस्टर को प्राथमिकता क्यों मिलती है।
डा. ठक्कर के अनुसार 2047 के विकसित भारत विज़न और 2070 नेट-ज़ीरो लक्ष्य को प्राप्त करने में टेक्सटाइल उद्योग केंद्रीय भूमिका निभाएगा। स्थानीय मांग और निर्यात दोनों ही तेज़ी से बढ़ेंगे।
सतत उत्पादन और एमएमएफ की नई दिशा
दक्षिण गुजरात टेक्सटाइल प्रोसेसर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष जितेंद्र वखारिया ने सतत उत्पादन के महत्व पर विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि 90 के दशक में पांडेसरा में शु( जल उपयोग और 2001 में  अपनाने के बाद सूरत देश में पर्यावरण-अनुकूल टेक्सटाइल मॉडल के रूप में पहचान बना चुका है।
उन्होंने कहा कि आज का युग केवल उत्पादन बढ़ाने का नहीं, बल्कि पर्यावरण-अनुकूल तकनीक अपनाने का है, क्योंकि वैश्विक कानून अधिक सख्त होते जा रहे हैं।
चैंबर के पूर्व अध्यक्ष और टेक्सटाइल टास्क फोर्स चेयरमैन आशीष गुजराती ने एमएमएफ की वैश्विक जरूरतों और अवसरों पर विस्तृत प्रस्तुति दी। उन्होंने कहा कि दुनिया में 75 प्रतिशत टेक्सटाइल एमएमएफ से निर्मित होता है और भारत इस क्षेत्र में बड़ी छलांग लगा सकता है।
स्पोर्ट्स वियर, रेनवियर, छाते, तकनीकी वस्त्रों, बेडशीट और फैशन से जुड़े अनेक क्षेत्रों में एमएमएफ की मांग लगातार बढ़ रही है।
उन्होंने बताया कि हर दो-तीन घंटे में बदलते फैशन ट्रेंड के बीच एमएमएफ उद्योग के लिए विशाल अवसर पैदा कर रहा है। फ्लेक्स बैनर पर प्रतिबंध के बाद रिसाइकिल फैब्रिक पर निर्भरता बढ़ रही है, जिससे सूरत जैसे शहरों के लिए नए बाजार खुल रहे हैं।
उद्योगपतियों के सवालों के जवाब और भविष्य की दिशा
दोनों दिनों के सत्रों में उद्योगपतियों ने कई तकनीकी, बाजार, निर्यात और उत्पादन से जुड़े प्रश्न पूछे, जिनका विशेषज्ञों ने विस्तृत समाधान भी प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन श्री अमरीश भट्ट ने किया और उन्होंने कहा कि ऐसे आयोजन सूरत को वैश्विक टेक्सटाइल हब बनने की दिशा में और मजबूत बनाएंगे।

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