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घटते कारोबार से चुनौतियों से जूझ रहा है टेक्सटाइल उद्योग 
By Textile Mirror - 16-12-2025

मुंबई/ घटता ग्रे कपडों का उत्पादन, अमेरिकी टैरिफ के कारण कम होता निर्यात कारोबार और अब समर के निर्यात कामकाज पर लटकी तलवार, वैवाहिक सीजन की ग्राहकी रूकने से स्थानीय मांग में अवरोध के बाद कपड़ा बाजार में कामकाज एक बार फिर मंदा हो गया है। इस बार थोक कपड़ा बाजार में पहले से ही वैवाहिक सीजन का कामकाज बहुत अच्छा नहीं रहा है, बल्कि रिटेल में कारोबार अच्छा रहने से व्यापारियों को सीजन के दूसरे दौर में कपड़ों में कारोबार सुधरने की उम्मीद है। 16 दिसम्बर से एक महीने के लिए खरमास लग रहा है। इसमें साउथ की ग्राहकी नहीं रहती है। 25 दिसम्बर से क्रिसमस वेकेशन शुरू होने यूरोप के निर्यात में भी रूकावट आने वाली हैं। 
अब करीब दो महीने तक लग्न मुहूर्त नहीं होने से कपड़ों में कारोबार साधारण रहने का अनुमान है। फरवरी से कपड़ों में फिर से ग्राहकी रहने की संभावना है, तब तक कपड़ों में कारोबार सीमित प्रमाण में ही रह सकता है। लेकिन गारमेण्ट कारखानों में कामकाज सुधर रहा है। यूनिफॉर्म और समर सीजन के लिए कपड़ों की तैयारी मैन्यूफैक्चरर्स करने लगे हैं। इसलिए माना जा रहा है वैवाहिक सीजन में बिकते फिनिश फैंसी कपड़ों में कारोबार कम हो सकता है, परंतु बाजार में अन्य कपड़ों में कारोबार उतना कम होने की संभावना नहीं है, जितनी कम होने की आशंका व्यक्त की जा रही है। ग्रे कपड़ों में घटी लेवाली चिंताजनक है। ग्रे कपड़ों का उत्पादन 40 प्रतिशत के आस-पास हो रहा है। 
वीविंग सेक्टर और प्रोसेसिंग इकाइयों में पूरी क्षमता के साथ अभी भी कामकाज नहीं हो रहा है। जबकि समर सीजन और यूनिफॉर्म की सीजन की ग्राहकी सामने है। कॉटन कपड़ों की मांग सुधरने के बदले में घटती जा रही है। जबकि रूई सस्ती है, इस बीच कॉटन यार्न के भाव में उछाल नहीं है। दूसरी ओर कॉटन यार्न का निर्यात घटा है, इसलिए यार्न बनाने वाली मिलों का जोर देसी बाजारों पर अधिक है, फिर भी न तो कॉटन ग्रे कपड़ों में लेवाली बढ़ रही है और न ही लूमों पर ग्रे कपड़ों का उत्पादन सुधर रहा है। ब्लैंडेड कपडों में कामकाज हो रहा है। कॉटन एवं पोलिएस्टर ब्लैंडेड कपड़ों की मांग है। फिलहाल बुरहानपुर और इचलकरंजी में सीपी का सबसे अधिक उत्पादन होता है। 
दिसावरों की ग्राहकी मोटे कपड़ों में हैै। साउथ की पोंगल की ग्राहकी जल्द ही शुरू होने की उम्मीद है। दिसावरों में ठंडी की सीजन में डार्क कलर कपड़ों की मांग सबसे अधिक रहती है। दिसावरी मंडियों में इस बार कामकाज अच्छा हो रहा है। परंतु विंटर सीजन के लिए ट्विल एवं साटीन जैसी हैवी वेराइटी कपड़ों का स्टॉक व्यापारियों के पास बहुत अधिक नहीं है। हैवी वैराइटी में 13 से 16 किलो की क्वालिटी ही चलती है। कॉटन पोपलीन 40/40, 136/72 की मांग बढ़ी है। समर सीजन के लिए डेªस मटेरियल की कोई ऐसी वैराइटी अभी तक सामने नहीं आ रही है, लेकिन भिवंडी में बनती स्पन कॉटन और स्पन पोलिएस्टर कपड़ा सूरत की ओर अच्छे प्रमाण में जा रहा है। 
शिटिंग कपड़ों में साउथ की कॉटन बाई कॉटन ग्रे की मांग सबसे अधिक थी, जो करीब 70 प्रतिशत तक घट चुकी है। इसके बदले में कॉटन बाई पोलिएस्टर ग्रे की मांग बढ़ी है। कोर्स काउंट 10/6, 60’’ पना सीपी बाई सीपी ग्रे का भाव 61 रूपये है, जबकि कॉटन बाई काटन 63’’ पना ग्रे का भाव 91 रूपये है। 16/8 84/28, 62’’ पना सीपी ग्रे का भाव 61 रूपये है जबकि कॉटन बाई कॉटन ग्रे का भाव 74 रूपये है। इसमें 50’’ पना सीपी ग्रे का भाव 31 रूपये और काटन ग्रे का भाव 37 रूपये है। 20/20, 56/60, 50’’ पना कॉटन बाई कॉटन निर्यात क्वालिटी ग्रे का भाव 46 रूपये है और 63’’ पना कॉटन बाई काटन ग्रे का भाव 58 रूपये है। सीपी 2/20, 60/56, 72’’ पना ग्रे का भाव 41 रूपये के करीब है।  
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार करार में अनिश्चितता बढ़ने के कारण तैयार वस्त्रों के निर्यात ऑर्डर पर जोखिम बना हुआ है। समर सीजन के एपेरल ऑर्डर को लेकर निर्यातकों और आयातकों के बीच बातचीत रूक जाने की खबरें आ रही है। भारत पर अमेरिका ने 50 प्रतिशत का भारी टैरिफ लगाया है,जो अन्य देशों की तुलना में सबसे अधिक है। इस कारण प्रतिस्पर्धी देशों जैसे कि बांग्लादेश, वियतनाम और चीन की ओर यह ऑर्डर खिसकने की संभावना है, जहां टैरिफ की दरें भारत की तुलना में कम हैं, वहीं मेडअप्स का ऑर्डर पाकिस्तान, मैक्सिको और चीन की ओर जा सकता है। भारत ने 2024 में अमेरिका में 10.3 अरब डॉलर टेक्सटाइल एपेरल का निर्यात किया था। 
देश की अर्थव्यस्था काफी मजबूत है। देश की जीडीपी ग्रोथ 8 प्रतिशत से अधिक रहने से तेजी से विकसित अर्थव्यवस्था तो है, लेकिन डॉलर के सामने भारतीय रूपया नीचे की ओर खिसकता जा रहा है, जिससे पेट्रेल एवं डीजल के मंहगे होने की अवधारणा से संभवतः नियंत्रण में रही महंगाई दर फिर से चढ़ सकती है। विदेशों से आयात करने पर यह महंगा साबित होगा, जबकि निर्यात में लिए अच्छा है, डॉलर मजबूत होने से निर्यातकों की कमाई बढ़ सकती है। परंतु इसमें कोई शक नहीं है कि भारत के टेक्सटाइल एवं एपेरल के निर्यात के लिए अमेरिका एक बड़ा बाजार है। निर्यात बढ़ाने के अथक प्रयास के बावजूद भारत के निर्यात पर इसका विपरीत असर भी दिखाई दे रहा है। 
 

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