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मुंबई/ कपास उगाने वाले राज्यों में आसमान साफ होने के बाद कपास की आवक बढ़ने तथा जिनिंग इकाइयों में प्रेसिंग कामकाज सुचारू रूप से होने लगने से हाल रूई की आवक बढ़ी है। कुछ राज्यों में कपास की आवक बड़ी तेजी से बढ़ रही है। एक ओर जहां देश में रूई का आयात बढ़ रहा है तो दूसरी ओर निर्यात कम हो गया है। ऊपर से कपास की गुणवत्ता कमजोर होने से स्पिनिंग मिलें ऐसी रूई का उपयोग कॉटन यार्न बनाने में करने से हिचक रही है। कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया की दलील है कि रूई व्यापार को मुक्त किया जाए। कम उत्पादकता एवं बढे़ न्यूनतम समर्थन मूल्य के कारण खड़ी हुई चुनौतियों के कारण भारतीय रूई अन्य प्रतिस्पर्धी बाजारों में महंगी हो गई है।
मौजूदा सीजन में देश के कई राज्यों में बेमौसमी बारिश के कारण रूई की गुणवत्ता को भारी नुकसान हुआ है। यहीं कारण है कि गुणवत्ता जरूरतों को परूी करने के लिए देश की कपड़ा मिलों को रूई का आयात करना पड़ा है। 31 दिसम्बर तक रूई आयात पर टैक्स नहीं है। उसके बाद फिर 11 प्रतिश त टैक्स लग सकता है। निर्धारित समय के बाद रूई आयात पर टैक्स लगता है तो अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भारतीय कपड़ों की स्पर्धात्मकता और घट सकती है। इसलिए एसोसिएशन की मांग है कि रूई को मुक्त व्यापार के तहत लाया जाए। देश में जरूरी रूई की गुणवत्ता हल्की होने से रूई का आयात पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष 9 लाख गांठ अधिक होने का अनुमान है।
एसोसिएशन की क्रॉप कमेटी के अनुसार 30 नवम्बर तक देश में रूई की आपर्ति अनुमान 148.37 लाख गांठ है। इसमें प्रेसिंग 69.78 लाख गांठ, आयात 18 लाख गांठ और ओपनिंग स्टॉक 60.59 लाख गांठ शामिल है। 30 नवम्बर तक कुल निर्यात शिपमेंट तीन लाख गांठ था। नवम्बर 2025 के अंत में कुल शेष स्टॉक में कपड़ा मिलों के पास 50 लाख गांठ और 46.97 लाख गांठ सीसीआई एवं महाराष्ट्र फेडरेशन तथा अन्य बहुराष्ट्रीय कंपनियों इत्यादि के पास होने का अनुमान है। पिछले अनुमान से राज्यानुसार रूई प्रेसिंग के अनुमान में गुजरात और महाराष्ट्र में क्रमशः तीन लाख गांठ से अधिक, तेलंगाना में 2.50 लाख गांठ कम और कर्नाटक में एक लाख गांठ अधिक हो सकता है।
देश में रूई उत्पादन का कुल अनुमान 309.5 लाख गांठ और स्थानीय खपत अनुमान 295 लाख गांठ है। कॉटन एसोसिएशन का अनुमान है कि 2025-26 में रूई का कुल निर्यात 18 लाख गांठ हो सकता है, जो 2024-25 की सीजन जितना ही है। स्पिनिंग मिलों के पास आयातित रूई का विकल्प मौजूद होने से मिलें हल्की रूई नहीं पसंद कर रही है। इसलिए खुले बाजार में कपास की कीमत सरकार के घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम मिल रहा है। यह किसानों के हित में नहीं है। हाजिर बाजार में अच्छे कपास का अभाव है। अब जैसे आवक बढ़नी शुरू हो गई है, संभवतः आगे बाजारों में कपास की अच्छी आवक हो और स्पिनिंग मिलें एवं जिनर्स लेवाली शुरू कर दें।
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