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मुंबई/ कपड़ा बाजार में स्थिरता है। कारोबार में गति नहीं है। श्रा( पक्ष में कारोबार हमेशा कम होता है। श्रा( पक्ष के बाद नवरात्रि से कपड़ों में ग्राहकी की पूरी संभावना है। कपड़ों का उत्पादन जो अभी बहुत धीमा है, इसमंे सुधार की गंुजाइश है। जीएसटी की दरें बदलने से टेक्सटाइल एवं क्लोदिंग उद्योग को बड़ी राहत मिली है। कपड़ा उद्योग जगत के लोगों का मानना है कि अमेरिका के टैरिफ से निर्यातक इकाइयों को झटका लगा था, परंतु जीएसटी की दरों में परिवर्तन टेक्सटाइल उद्योग के लिए मध्यम से लंबी अवधि के लिए उपयोगी कदम साबित होगा। व्यापारियों को लगता है कि आगे कारोबारी माहौल बदलेगा, कपड़ा सस्ता होने पर ज्यादा कारोबार होने की संभावना है। 
नवरात्रि, दशहरा, ओणम तथा दीपावली जैसे त्योहार सामने होने से कपड़ों में कारोबार की पूरी संभावना है। वैवाहिक सीजन शुरू होने पर मंदी की उम्मीद नहीं है। विंटर एवं वैवाहिक सीजन के लिए फैंसी शर्टिंग में कामकाज कुछ-कुछ होने लगा है, लेकिन उठाव अधिक नहीं है। विंटर सीजन की वेराइटी रेयॉन, मोडाल बेस कपड़ों की मांग है। भिवंडी में ग्रे सूती कपड़ों का उठाव अच्छा नहीं होने से भाव घटे है। अभी कपड़ों का उत्पादन 40 प्रतिशत की क्षमता से अधिक नहीं है, फिर भी ग्रे में प्रति किलो एक रूपये की गिरावट आई है। प्लेन वेराइटी में काम हो रहा है। बाजार की चलनी आइटमांे में कामकाज घटा है, कॉटन यार्न सस्ता हो रहा है, इसलिए वीवर्स उत्पादन में सतर्क हो गए है। 
कपड़ों में खुदरा कारोबार त्योहारों के दौरान अधिक होता है। कुछ विशेष अवसरों पर कपड़ों की मांग अधिक बढ़ती है। नवरात्रि के बाद कपड़ों की डिमांड शुरू होने की संभावना को देखते हुए रिटेलर्स की कपड़ों की ऐसी वैराइटी में लेवाली है, जिनका उपयोग त्योहारों के साथ आगे नवम्बर में शुरू होने जा रही वैवाहिक सीजन में हो सके। जीएसटी की दरों में सरलीकरण के बाद कपड़ों की कीमते कम होने के आसार हैं विशेषकर सिंथेटिक कपड़ों की मांग अधिक रह सकती है। इसमें ब्लैंडेड वेराइटी की ओर ग्राहकों का रूझान रहता है। फैंसी वेराइटी की सूटिंग, शर्टिंग, उपहार इत्यादि के लिए कॉम्बो पैक के साथ साड़ी एवं डेªस मटेरियल, बेडशीट्स इत्यादि के कारोबार में जल्द सुधार होगा। 
कपडों में काउंटर बिक्री कम होती जा रही है। कपड़ा मैन्यूफेक्चर्स कपड़ों की आपूर्ति गारमेण्ट के बडे़ खिलाड़ियों को करना पसंद करते हैं, जिनकी खरीदी बल्क में होती है। गारमेण्ट कपड़ों की मांग हमेशा तेजी से बढ़ रही है। विविधता के साथ नये पैटर्न के कपड़ों का उत्पादन करने पर जोर दिया जाता है। लेकिन जब से निर्यात को लेकर तरह तरह की अटकलें शुरू हुई है, तब से कपड़ा उत्पादकों से लेकर व्यापारियों एवं स्टॉकिस्टों की ओर से बहुत अधिक स्टॉक रख कर जोखिम उठाने से बचा जा रहा है। परंतु आगे सीजन कपडों में अच्छी बिक्री का होने तथा कॉटन यार्न और सिंथेटिक यार्न के सस्ता होने से कपड़ों की मांग के साथ उत्पादन में भी व्यापक सुधार की आशा जग गई है। 
अमेरिकी टैरिफ के बाद पटरी से उतरे टेक्सटाइल क्षेत्र को राहत देने के लिए सरकार की ओर से अनेक कदम उठाए जा रहे है। इसमें रूई आयात पर टेक्स 31 दिसम्बर तक स्थगित करना, जीएसटी की दरों में बदलाव कर वस्तुआंे को सस्ता करने एवं कर सरलीकरण को बढ़ावा देना, निर्यातक इकाइयों के लिए जल्द नये पैकेज की घोशणा और अमेरिका को छोड़कर दुनिया के दूसरे देशों में निर्यात कारोबार बढ़ाने के लिए अवसरों की तलाश करना तथा द्विपक्षीय समझौतों के जरिए निर्यात को प्रोत्साहन देना शामिल है। भारत एक गुटनिरपेक्ष राष्ट्र है। भारत किसी एक समूह के साथ नहीं बल्कि सभी के साथ अच्छे रिश्तों का हिमायती है, इसलिए नये बाजार तलाशना आसान है। 
जीएसटी दरें बदलने से कॉटन यार्न और कॉटन कपड़ों पर बड़ा फर्क नहीं पडे़गा क्योंकि इस पर पहले से ही पांच प्रतिशत की दर रही है, लेकिन रूई सस्ती होने से कॉटन यार्न की लागत कम होगी और कॉटन यार्न का भाव घटने की संभावना है। पिछले कुछ समय से कॉटन कॉर्पोरशन ने अपनी बिक्री भाव में करीब 2600 रूपये की कटौती की है। इससे स्पिनिंग मिलों को कच्चा माल सस्ता मिलेगा। मैनमेड फाइबर पर जीएसटी दरें कम कर दी गई है, जो पहले 12 एवं 18 प्रतिशत के स्लेब में आता था। जबकि कपड़ा पांच प्रतिशत में बिकता था। कच्चे माल का भाव अधिक होता था, जिससे इन्वर्टेड ड्यटी स्ट्रक्चर की समस्या रहती थी, अब पांच प्रतिशत की दर होने से यह दूर हो गई है। 
कॉटन टेक्सटाइल और सिंथेटिक टेक्सटाइल की एक समान जीएसटी की दर होने से मैनमेड टेक्सटाइल को अधिक फायदा होगा। 50 प्रतिशत अमेरिकन टैरिफ का असर मेडअप्स एवं गारमेण्ट निर्यात पर दिखाई देेने लगा है। भारत से कपड़ा एवं गारमेण्ट का 25 प्रतिशत निर्यात अमेरिका में किया जाता है। अमेरिकी आकर्षक बाजार में ऊंचे टैरिफ के कारण अब निर्यात में अवरोध है। दूसरी ओर चीन एवं भारत के बीच संबंध सुधर रहे है। इससे चीन से भारत में कपड़ा एवं गारमेण्ट का आयात बढ़ने का भय है। पहले से ही भारत एवं चीन के बीच व्यापार घाटा अधिक है। व्यापारियों का अनुमान है कि त्यौहारी एवं वैवाहिक सीजन में कपड़ा एवं गारमेण्ट में कारोबार बढ़ने की संभावना है। 
 
