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जयपुर/ रेडीमेड गारमेंट्स इंडस्ट्री के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीति ने बड़ा झटका दे दिया है। अमेरिका ने भारत से होने वाले गारमेंट्स एक्सपोर्ट पर 25 प्रतिशत प्यूनेटिव टैक्स लगा दिया है। इससे पहले 9 प्रतिशत बेस ड्यूटी के साथ अब टैक्स लेवल बढ़कर लगभग 59 प्रतिशत तक पहुंच गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस दर पर ‘मेक इन इंडिया’ गारमेंट्स अमेरिकी बाजार से लगभग बाहर हो जाएंगे।
क्रिसिल की रिपोर्ट का अनुमान
रिसर्च एजेंसी क्रिसिल के अनुसार, चालू वित्त वर्ष में भारत की आरएमजी इंडस्ट्री की रेवेन्यू ग्रोथ आधी रह जाएगी। क्रिसिल ने 45 हजार करोड़ रुपये के रेवेन्यू वाली 120 प्रमुख आरएमजी कंपनियों के विश्लेषण के आधार पर कहा कि इस टैरिफ का असर सभी पर समान नहीं होगा। कुछ कंपनियां, जिनकी 40 प्रतिशत से अधिक कमाई अमेरिका से होती है, उन्हें सबसे बड़ा झटका लगेगा, जबकि डायवर्सिफाइड मार्केट वाली कंपनियों पर अपेक्षाकृत कम असर होगा।
पिछले वित्त वर्ष में भारत का आरएमजी एक्सपोर्ट 16 बिलियन डॉलर का था, जिसमें एक-तिहाई हिस्सा अमेरिका का था। ऐसे में नए टेक्स ने पूरी इंडस्ट्री की चिंता बढ़ा दी है।
प्रतिस्पर्धा में भारत पिछड़ा
हालांकि बांग्लादेश में हालिया राजनीतिक उथल-पुथल से भारत को आरएमजी एक्सपोर्ट में लाभ मिलने की उम्मीद थी, लेकिन बढ़े हुए अमेरिकी टैरिफ ने यह मौका छीन लिया है। चीन, बांग्लादेश और वियतनाम जैसे प्रतिस्पर्धी देश कीमतों में बढ़त बनाए हुए हैं, जबकि भारत के प्रोडक्ट्स अब अमेरिकी बाजार में कम प्रतिस्पर्धी रह गए हैं।
आगे की राह- नए मार्केट्स पर फोकस
क्रिसिल के डिप्टी चीफ रेटिंग ऑफिसर मनीष गुप्ता ने कहा कि भारतीय गारमेंट एक्सपोर्टर्स को अब ईयू, यूके और यूएई जैसे वैकल्पिक बाजारों में अपनी मौजूदगी बढ़ानी होगी। वर्तमान में इन मार्केट्स का भारत के गारमेंट एक्सपोर्ट में लगभग 45 प्रतिशत शेयर है।
भारत ने हाल ही में यूके के साथ एफटीए साइन किया है, लेकिन इसके लागू होने में एक साल का समय लगेगा। वहीं, ईयू के साथ एफटीए की बातचीत फाइनल स्टेज पर है और इसे फास्ट-ट्रैक किया जा रहा है।
घरेलू बाजार में उम्मीदें बरकरार
टैरिफ संकट के बीच घरेलू बाजार में अभी भी उम्मीदें बनी हुई हैं। आरएमजी सेक्टर के कुल रेवेन्यू में भारतीय बाजार का हिस्सा लगभग तीन-चौथाई है। वित्त वर्ष 2026 तक यहां 8-10 प्रतिशत ग्रोथ की संभावना जताई गई है। इसके अलावा जीएसटी में कटौती से लोकल डिमांड को और बढ़ावा मिल सकता है।