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चंदेरी व बनारसी से मुकाबला कर रही डोरिया साड़िया, कोटा को दिलाया पहला जीआई टैग
By Textile Mirror - 10-09-2024

कोटा/ कोटा में हथकरघा की बात की जाती है तो डोरियां की साड़ियां सबसे पहले पायदान में आती है इन साड़ियों में कॉटन सिटी और इंडस्ट्रीयल सिटी में पहले से कोटा को देश में पहचान दिलाई। शहर से सटा कैथून तो हेण्डलूम विलेज के रूप में सदियों से जाना जाता रहा। करीब 100 साल पहले वहां शुरू हुए इस गृहउद्योग में अब भी करीब 2000 परिवारों के 10 हजारा लोग प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से जुडे है।
करोड़ों का सालाना करोबार हो रहा है। इसका कारण बुनकरों ने कोटा डोरिया को बाजार की मांग के अनुसार बदला। अभी केवल सूत से बनने वाले डोरिया साड़ी में अब सिल्क का इस्तेमाल होता है। ट्रेंड के मुताबिक नए-नए डिजाइन आ रहे है। नित नवाचारों के चलते वर्ष 1999 में भारत सरकार ने भैगोलिकि सूचकांक कोटा डोरिया के ... सीआई पेटेंट का आवेदन ... वर्ष 2005 में जीआई ... और 2009 में लोगो  मिल .. है। यह कोटा में पहला .... उत्पाद था, जिसे जीआई मिला था।


19 वी सदी में सूत के साथ सिल्क का उपयोग भी शुरू किया था 
19 वी सदी में यहां के बुनकर मैसूर गए और वहा से सिल्क लाए। फिर कोटा डोरिया में 14 धागे का ताना बाना बुना जाने लगा। इसमें 8 धागे कॉटन और 6 धागे सिल्क लिया। साड़ियों में अब तो सोने व चांदी के तारों भी उपयोग होने लगे। बुनकरों ने बताया कि कोरोना काल में यह व्यवसाय भी प्रभावित हुआ अब फिर लूम बढ़ रहे है। देश भर में हैण्डलूम संघर्ष कर रहा है। लेकिन अच्छी बात है कि डोरिया के काम से युवा भी जुड़ रहे है। चंदेरी, काजीवरम, बनारस, बंगाल की साड़ियों के डिजाइन  इसमें दिया जाने लगा। अहमदाबाद की बजाय कोयंबटूर का कॉटन, बैंगलूर का सिल्क, सूरत की जरी भी उपयोग करने लगे है।
मैसूर से उपहार में आए थे तीन बुनकर, बुनकरी के लिए वर्ष 2015 में चन्नई में राष्ट्रीय और वर्ष 2018 में राजस्थान रत्न से सम्मानित नसरूद्दीन अंसारी बताते है कि कोटा डोरिया का इतिहास रियासत काल से है 16 वी सदी में तत्कालीन दरबार राव किशोरसिंह मैसूर गए थे। वहां से उपहार में तीन बुनकर परिवार सौपे गए। कोटा दरबार ने इन्हें कैथून में चंद्रलोई नदी के किनारे बसाया। इन परिवारों ने खादी कपड़ा बनाना शुरू किया। धीरे-धीरे बदलाव करते हुए सूती वर्गाकार छोटे-छोटे ताने बाने में बुनाई करने लगे। यह बुनाई काफी पसंद की गई
अधिक मांग दक्षिण भारत मेंः डोरिया की करीब 80 फीसदी मांग दक्षिण भारत में है। इसके उलट उत्तर भारत में सलवार सूट, जींस टॉपर का चलन बढ़ गया। ये साड़ियां महंगी भी होती है। बाजार में कोटा डोरिया की डेढ़ दो लाख रूपये तक की साड़ी मिल रही है। 5 से 40 हजार रूपये की साड़ियां स्थानीय बाजार में आमतौर पर बिकती है। महंगी साड़ियां ऑर्डर पर बनती है। कोई-कोई साड़ी बनाने में 3 माह तक लग जाते है।

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