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पिलखुवा/ सूत बाजारांे मंे कामकाज नहीं होने से सूत कारोबारी व मिल मालिकों इन दिनांे परेशानी महसूस कर रहे हैं। कपड़ा मंडियांे मंे तैयार कपड़ांे का उठाव नहीं होने से कपड़ा कारखाना मंे धागे की खपत लगातार घट रही है। मिलों का बढ़िया धागा कम उठ रहा है, वही हल्की किस्म के बनने वाले धागे ज्यादा उठ रहे हैं। भारत पाक के बीच सिंदूर अभियान के चलते ही कपड़ा मंडियों पर इसका असर पड़ा है। बाजारांे मंे देश की अनेक मंडियांे से जितने ऑर्डर निकलने चाहिये उतने नहीं निकल रहे हैं। आयात-निर्यात भी इन दिनों खुलकर के नहीं होने से बाजारांे मंे असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
कपड़ा मंडियांे मंे जितना कपड़ा बनना चाहिये उतना कपड़ा तैयार नहीं हो रहा है। कपड़ा उत्पादकों का कहना है कि जब दिसावर की मंडियांे से तैयार कपड़ांे के ऑर्डर नहीं निकलते हैं तब बाजारांे मंे कामकाज निकलने वाला नहीं है। घरेलु मंडियों मंे खपने वाली की क्वालिटी जितनी बढ़िया होनी चाहिये दिन-प्रतिदिन हल्की क्वालिटी के माल ही ज्यादा बिक रहे हैं।
बाजारांे में बिकने वाले कपड़ांे मंे चादर, गमछा, गद्दा, टापसीट के अलावा कैनवास मंे बनने वाली बड़ी संख्या में क्वालिटी नॉन डाई व मिलांच के हल्के धागांे से ही कपड़ा बन रहा है। घरेलू बाजारांे मंे क्वालिटी केवल दस से बीस प्रतिशत ही बन रही होगी। हल्के मालांे व बढ़िया मालांे के भावांे में बड़ा अंतर आ रहा है।
आयात-निर्यात को देखा जाये तो वह ट्रेडवार मंे फंसा हुआ है। इन दिनों कपड़ा बनाने वाले व निर्यात करने वाले संकट के दौर से गुजर रहे हैं। मालांे को आयात-निर्यात जितना होना चाहिये उतना नहीं हो रहा है। जब तक निर्यात के ऑर्डर खुलकर नहीं आते हैं तब तक काम चलने की सम्भावना कम ही दिखायी पड़ती है।