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क्या आम आदमी की जान की कोई कीमत नहीं?
पत्रकार गोविन्द शर्मा
भीलवाड़ा/ हर साल की तरह इस साल भी भीलवाड़ा में बारिश शुरू हो चुकी है। फर्क बस इतना है कि बादल ऊपर से बरसे और नीचे से प्रशासन की असलियत टपकने लगी है। शहर की सड़कों पर जगह-जगह पानी भर गया, गड्ढे झील बन गए, मोहल्ले तालाब, और आमजन की आवाजाही एक चुनौती। जबकि पूरा मानसून तो आना अभी बाकी है। शहर के कई ऐसे स्थान है जहां हर साल पानी भरता है, फिर भी ये अनदेखी क्यो?
बड़ा सवाल ये है कि नगर निगम, नगर विकास न्यास और जिला प्रशासन आखिर कर क्या रहे हैं? साल भर टैक्स वसूली, विज्ञापन और उद्घाटन में दिखने वाला प्रशासन, बारिश में कहीं गायब क्यों हो जाता है? क्या इन्हें हर साल होने वाली जन हानि की आदत हो चुकी है?
हर वर्ष बारिश के समय कोई न कोई मासूम जान इन गड्ढों, बहते पानी और खुले नालों में डूबकर दम तोड़ देती है। और फिर शुरू होता है वही पुराना खेल, एक प्रेस नोट, सांत्वना और फिर चुप्पी।
शहर की योजना पर करोड़ों खर्च होते हैं, लेकिन ड्रेनेज सिस्टम का हल ढूंढने में प्रशासन नाकाम रहा है। जनप्रतिनिधि फोटो खिंचवाने में आगे हैं, लेकिन जिम्मेदारी लेने में सब पीछे।
क्या आम आदमी की जान की कोई कीमत नहीं?
क्या प्रशासन की पहली प्राथमिकता जनसुरक्षा नहीं होनी चाहिए?
यह सिर्फ एक लापरवाही नहीं, बल्कि एक सिस्टमेटिक असफलता है। सवाल है जिम्मेदारी कौन लेगा? जवाबदेही किसकी है? और कब तक जनता सिर्फ ‘प्राकृतिक आपदा’ के नाम पर जान गवांती रहेगी?
अब चुप रहने का नहीं, जवाब मांगने का वक्त है।
भीलवाड़ा को बहाने नहीं, समाधान चाहिए।