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अडानी समूह के खिलाफ अमेरिका में आरोप लगना, संसद की कार्यप्रणाली को बाधित करना, यह भारतीय लोकतंत्र को कमजोर करने का अंतरराष्ट्रीय प्रयास भी हो सकता है। कनाडा में निज्जर का प्रकरण हो अथवा नेपाल, श्रीलंका, म्यामार, बांग्लादेश, पाकिस्तान का संकट ही क्यों न हो सभी की नजरें भारत में ही दोष ढूंढती है और इन देशों में अशांति उत्पन्न करके भारत को ही कमजोर करने की साजिश रची जाती रही है। लोकसभा के चुनावों में संविधान को समाप्त करने का प्रचार, आरक्षण को समाप्त करने दुःप्रचार भी इसी आशंका को जन्म देता है। जिसके उत्तर में सरकार को बटने की बजाए एक होने का नारा देना पड़ा था।
अंतरराष्ट्रीय शक्तियां यह मान चुकी है वर्तमान सरकार किसी के दबाव में आकर कार्य नहीं करती है। चाहे कश्मीर में धारा 370 व 353 की समाप्ति का निर्णय हो, भारत ने किसी भी अन्तर्राष्ट्रीय दबाव में कार्य नहीं किया है। अमेरिका भी नहीं चाहता है कि भारत चीन की तरह एक वैश्विक शक्ति बने, भारत निश्चित रूप से विश्वस्तर पर एक प्रमुख आर्थिक व सामरिक शक्ति के रूप में आगे बढ़ रहा है। आज भारत गत एक दशक से 7 प्रतिशत से अधिक आर्थिक विकास दर के साथ विश्व में सर्वाधिक तेज गति से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था बन गया है। चीन के विस्तारवाद व प्रभाव को रोकने के लिए अमेरिका को भी भारत की आवश्यकता है। अतः अमेरिका भारत को रणनीति मित्र की संज्ञा देता है, लेकिन भारत अमेरिका के संबंध कभी भी रूस-भारत की तरह आत्मीयता पूर्ण नहीं सके हैं। लेकिन पाकिस्तान व बांग्लादेश में जो हो रहा है, उस पर अमेरिका विदेश मंत्रालय भी चुप्पी साधे हुए हैं।
अमेरिका के अखबारों में छपता है कि मोदी को कमजोर करने के लिए अडानी कमजोर होना आवश्यक है। अडानी को अमेरिका में बदनाम करने का प्रयास भी भारत को कमजोर करने का ही प्रयास कहा जा सकता है। अमेरिका में रिश्वत पर अडानी को नोटिस जारी किया जाता है जो भारत में अर्जित अनुबंधों से संबंधित है, यह तो सीधे-सीधे भारत के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप है और भारत के विपक्ष को क्या चाहिए, उसके पका पकाया मुद्दा मिल गया है।
सोरोस जैसे लोग भी अमेरिकी शह पर ही भारत को कमजोर करने का प्रयास करते रहे हैं। विडम्बना तो यह भी है कि भारत की प्रमुख विपक्ष नेता सोनिया गांधी ऐसे अन्तराष्ट्रीय संगठन की सह अध्यक्ष है जो हमेश कश्मीर के मुद्दे पर मुस्लिम परस्त देशों के साथ मिलकर भारत की आलोचना करता रहा है।
भारत की संसद दो सप्ताह से बाधित रही यह सब कुछ भारत के लोकतंत्र को अस्थिर करने का ही प्रयास है इसके माध्यम से भारत की लोकतांत्रिक स्तर पर चुनी हुई सरकार को अस्थिर करने की कोशिश ही कहा जा सकता है। भारत विश्वस्तर पर केवल आर्थिक शक्ति ही नहीं वरन् एक प्रमुख राजनैतिक शक्ति के रूप में उभर रहा है और विश्वस्तरीय शक्तियों इसको स्वीकारने के लिए तैयार नहीं लगती है। यही वजह है कि भारतीय लोकतंत्र को ऐनकेन प्रकारेण अस्थिर बनाने का अन्तर्राष्ट्रीय षड़यंत्र चल रहा है लेकिन मोदीजी का धैर्य एवं योजनाएं उनके मन्सूबों पर पानी फेरती जा रही है।