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मुंबई/ स्पिनिंग मिलों की कमजोर मांग और लगातार बढ़ रही आवक से मंदी के कारण हाजिर बाजार में कपास के भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम हो गए हैं। जबकि बेमौसमी एवं अनियमित बारिश तापमान में घट-बढ़, खड़ी कपास की फसलों पर कीटाणुओं के हमला और इनपुट खर्च अधिक होने से कपास बुवाई का क्षेत्रफल करीब 10 प्रतिशत कम रहा है। विभिन्न एजेंसियों का उत्पादन अनुमान भी गिरावट का है। अनुमान है कि देश में रूई का उत्पादन 300 लाख गांठ या थोड़ा कम ज्यादा हो सकता है। पिछले 10 वर्षों में यह देश का सबसे कम उत्पादन आंकड़ा है। ऐसी स्थितियों में रूई के भाव बढ़ने की संभावना अधिक होती है, जबकि हो रहा है इसका ठीक उल्टा भाव घटे हैं।
कपास का भाव एमएसपी की तुलना में प्रति क्विंटल 500 से 1000 रूपये तक कम चल रहा है। इससे कपास किसानों को नुकसान हो रहा है। किसान परेशान, स्पिनिंग इकाइयां भी बहुत खुश नहीं है, देश में रूई के भाव कम है, तो विदेशी बाजारों में इससे से भी कम भाव पर रूई मिल रही है, जीनर्स हैरान, सरकारी एजेंसियों पर माल खरीदने का दबाव बढ़ रहा है। अनुमान है कि दिसम्बर में अब तक करीब 110 लाख गांठ माल बाजार में आ चुका है। इसके सामने कॉटन कॉर्पोरेशन को दिसम्बर में अब तक समर्थन मूल्य पर 42 लाख गांठ की खरीदी करनी पड़ी है। जबकि पूरे देश में जीनरों की कुल कपास खरीदी 60 से 65 लाख गांठ तक सीमित है। देश से रूई का निर्यात बढ़ने की संभावना कम है।
केंद्र सरकार ने मार्केटिंग वर्ष 2024-25 के लिए मध्यम किस्म की कपास के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रति क्विंटल 7121 रूपये और लंबे रेशे की अच्छी वैराइटी कपास के लिए प्रति क्विंटल 7521 रूपये की घोषणा की है। कपास के लिए यह न्यूनतम समर्थन मूल्य पिछले वर्ष की तुलना में 7 प्रतिशत अधिक है, परंतु विडम्बना है कि किसानों को यह भाव नहीं मिलने के कारण सीसीआई को खरीदी के लिए उतरना पड़ा है। सीसीआई ने 2023-24 मार्केटिंग वर्ष के दौरान 33 लाख गांठ की खरीदी की थी। रोचक बात यह है कि सीसीआई की कपास की खरीदी तेलंगाना, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और गुजरात में करनी पड़ी है। सबसे अधिक कपास उत्पादक राज्य गुजरात में 88506 गांठ की खरीदी की गई है।
विदेशी बाजारों में रूई के भाव भारत की तुलना में सस्ते हैं। डॉलर के मुकाबले में भारतीय रूपये का अवमूल्यन होने के बावजूद सीजन के पहले दो महीने अक्टूबर एवं नवम्बर 2024 में रूई का आयात पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में तीन गुना बढ़ गई है। पिछले वर्ष अक्टूबर नवम्बर में तीन लाख गांठ रूई का आयात किया गया था, जबकि चालू सीजन में रूई का आयात बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है। निर्यात पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। देष में रूई का आयात बढ़ रहा है, स्पिनिंग मिलों की देशी रूई में खरीदी कम हो गई है। बाजारों में कपास की आवक बढ़ती जा रही है। कॉटन एसोसिएशन के आंकड़ों के अनुसार रूई की दैनिक आवक दो लाख गांठ पार कर चुकी है।