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यूनिफॉर्म मालों की मांग लेकिन उत्साह की कमी
इचलकरंजी/ गर्मी का मौसम अब चरम सीमा पर है। तेज धूप का सीधा असर खुदरा बाजार पर पड़ा हैं। साथ ही साथ छात्रों के परीक्षाओं के कारण लग्नसरा की ग्राहकी रुकी हुई है। इसी दौरान रमजान ईद का त्यौहार बडे़ धूमधाम से मनाया गया लेकिन ग्राहकी संतोषजनक नहीं थी। मार्च एण्डिंग के कारण बाजारों में अब-तक आर्थिक तंगी महसूस हो रही हैं। इसकेे चलते कपड़ा उत्पादन पर हुआ है। यह स्थिति शायद 15 से 25 अप्रैल तक रहने का अनुमान है।
स्थानीय रेडीमेड गारमेण्ट उद्यमियों के पास स्कूल यूनिफॉर्म्स तथा गर्मीयों में पहनने वाले प्योर कॉटन के सफेद पतले कपड़े जैसे पायजामा कुर्ता, हाथ रूमाल, कॅप्स आदि के ऑर्डर्स है। पावरलुम उद्योग में ग्रे कपड़े की माँग ठीक हैं लेकिन उत्साह की कमी है। स्थानीय सूत बाजार की स्थिति जैसे की तैसी हैं। अमेरिका के ट्रंप सरकार के टेरिफ बदलाव के कारण भारत का कपड़ा निर्यात बढ़ने की चर्चा स्थानीय कपड़ा बाजार में चल रही हैं।
भारतीय कृकृषि क्षेत्र में किसानों के लिए बाजार कीमतों में उतार-चढ़ाव हमेशा चिंता का विषय रहता है। वर्तमान समय में विभिन्न कृषि फसलों की कीमतों में काफी बदलाव देखने को मिल रहा है। कई कारक इन दरों को प्रभावित करते हैं, जिनमें जलवायु परिवर्तन, आपूर्ति-माँग संतुलन, अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों और सरकारी नीतियों में उतार-चढ़ाव का असर कृषि वस्तुओं की कीमतों पर पड़ रहा है।
कपास एक महत्वपूर्ण नकदी फसल है और इसकी कीमतें घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कई कारकों से प्रभावित होती हैं। मार्च खत्म होने के बाद बाजार में कपास की आवक काफी कम हो गई है. वर्तमान में, दैनिक आवक लगभग 52,000 गांठ ;प्रत्येक 170 किलोग्रामद्ध है, जो पहले की तुलना में कम है।
हालाँकि, कपास की माँग स्थिर रहने से कपास की कीमतों में सुधार हुआ है। वर्तमान में, कपास का भाव 7,100 से 7,600 रुपये प्रति क्विंटल है। यह कीमत पिछले साल की समान अवधि की तुलना में लगभग 10 प्रतिशत अधिक है।
कपास बाजार विशेषज्ञों के मुताबिक, अगले कुछ हफ्तों में कपास की आवक और कम होने की संभावना है क्योंकि ज्यादातर किसान अपना कपास बेच चुके हैं। इसलिए कपास की कीमतों के समर्थन से कीमतें स्थिर रहने की संभावना है।
विशेषज्ञों ने सलाह दी है कि कपास किसानों को कपास बेचते समय बाजार में इन घटनाक्रमों पर विचार करना चाहिए और आवश्यकता के अनुसार कपास का भंडारण करना चाहिए।
दूसरी ओर अमेरिकी आयात कर नीति से भारतीय कपड़ा उद्योग को लाभ हुआ है। 2024 में चीन ने 36.1 बिलियन डॉलर ;29.6 प्रतिशतद्ध का निर्यात किया। वियतनाम 15.5 बिलियन डॉलर ;12.7 प्रतिशतद्ध के निर्यात के साथ दूसरे स्थान पर था। भारत 9.71 बिलियन डॉलर ;7.8 प्रतिशतद्ध के निर्यात के साथ तीसरे स्थान पर रहा। इसके बाद बांग्लादेश का स्थान रहा, जिसने 7.49 बिलियन डॉलर ;6.14 प्रतिशतद्ध का निर्यात किया। संयुक्त राज्य अमेरिका ने 2024 में कुल 107 बिलियन डॉलर का आयात किया। यह आंकड़ा विश्व के कपड़ा निर्यात बाजार से 14 प्रतिशत अधिक है। यद्यपि चीन और बांग्लादेश को नए अमेरिकी आयात शुल्कों से नुकसान हुआ है, लेकिन भारत को लाभ हो रहा है। हालाँकि, हमारे देश में परिधान उत्पादन की लागत को कम करना आवश्यक है। बांग्लादेश, श्रीलंका, पाकिस्तान, वियतनाम आदि देशों में परिधान उत्पादन की लागत भारत की तुलना में बहुत कम है। बांग्लादेश, श्रीलंका, पाकिस्तान, वियतनाम आदि देशों में परिधान उत्पादन की लागत भारत की तुलना में बहुत कम है। यदि इससे करों में वृ(ि भी हो जाती है, तो भी वे देश संयुक्त राज्य अमेरिका को निर्यात कर सकेंगे। इस प्रतिस्पर्धी स्तर पर, भारतीय वस्त्र उद्योग योजना और रणनीतिक डिजाइन पर ध्यान केंद्रित करके अवसरों का अधिक लाभ उठाने में सक्षम होगा।
इसी के अनुरूप, वीटा पावरलूम एसोसिएशन की अध्यक्ष किरण तारलेकरजी ने कहा कि, ‘‘इस समझौते से विभिन्न देशों से तैयार वस्त्रों पर आयात शुल्क लगेगा। प्रमुख आपूर्तिकर्ता देशों पर विचार करें तो यह प्रतिस्पर्धा मुख्य रूप से चीन, बांग्लादेश और भारत के बीच है। ट्रम्प प्रशासन ने चीन पर 54 प्रतिशत, बांग्लादेश पर 37 प्रतिशत और भारत पर 26 प्रतिशत के नये आयात शुल्क की घोषणा की। चीन पर टैरिफ में भारी वृ(ि से भारत को निर्यात के लिए बहुत बड़ा अवसर मिला है। यदि हम अकेले चीन की बात करें तो इस देश के लिए आयात कर, जो पहले 34 प्रतिशत था, 20 प्रतिशत की भारी वृ(ि के साथ 54 प्रतिशत तक पहुंच गया है। चीन में टैरिफ वृ(ि और बांग्लादेश में अस्थिरता को देखते हुए, भारत के लिए अब वस्त्र निर्यात का एक बड़ा अवसर पैदा हो गया है।’’
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