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टैरिफ बढ़ने से कपड़ा उद्योग पर पड़ सकता है प्रतिकूल असर
कपड़ों में समर सीजन की मांग में करंेट नहीं, कॉटन यार्न महंगा होने के बाद भी कॉटन, पीवी एवं पीसी कपड़ों में उछाल के बदले ग्राहकी धीमी
मुंबई/ कपड़ा बाजार में समर सीजन के कपड़ों की मांग में कोई करंेट नहीं है। दिसवारी मंडियों से पेमेंट आने लगने से अब मार्च एंडिंग के समय जैसा आर्थिक संकट था, वैसा नहीं है। वैवाहिक सीजन की मांग जल्द निकलनी शुरू होगी, माना जा रहा है कि अब कपड़े में कारोबार गतिशील हो जाएगा। यद्यपि कपड़ों का उत्पादन कम है, निर्यात में अड़चनें है, प्रोसेसिंग इकाइयों में कामकाज कम क्षमता पर हो रहा है, तथापि बाजारों में कपड़ों की कमी नहीं है। दिसावरी मंडियों की मांग कमजोर है। मंद ग्राहकी से स्थानीय सतर पर रिटेलर्स संभलकर कपड़ों का स्टॉक कर रहे है। पिछले कुछ समय से दिखाई दे रहा है कि किसी भी सीजन कपड़ों में कारोबार अच्छा नहीं हुआ है।
कॉटन यार्न में तेजी आने से ग्रे सूती कपड़ों के भाव बढ़ाकर बोले जा रहे हैं, परंतु सामने जब कोई लेवाल ही नहीं है, तब कॉटन यार्न की भाव वृ(ि को बाजार में हजम करना कठिन है। भिवंडी में मंदी जैसी स्थिति है और कपड़ों का उत्पादन बढ़ ही नहीं रहा है, तो इचलकरंजी स्लो है और मजदूरी की दरें यहां घट गई है। ईरोड की ओर यार्न के भाव बढे़ हैं, तो कपड़ों के भाव बढे़, लेकिन कपड़ों की ग्राहकी नहीं सुधरी। सूरत की ओर वीविंग पूरी क्षमता के बदले 70 से 75 प्रतिशत की क्षमता पर हो रही है, तो प्रोसेसिंग की क्षमता इससे भी कम है। कहने का तात्पर्य है कि कपड़ों के जितने भी प्रमुख सेंटर है, उन सभी केंद्रों पर कपड़ों का उत्पादन और बिक्री दोनों में गिरावट आ गई है।
कपड़ा बाजार का सेंटीमेंट अभी पूरी तरह से नहीं सुधर सका है। तथापि सीजन में चलने वाली कुछ आइटमों में रूख सकारात्मक होने लगा है। स्कूल यूनिफॉर्म में हलचल बढ़ने के साथ अब फैशनेबल शर्टिंग की पूछताछ बढ़ी है। यद्यपि शर्टिंग सुस्त है। कॉटन, पीवी एवं पीसी में उछाल के बदले नरमी है। चेक्स, लाइनिंग और प्रिंट में रूख कमजोर है। परंतु यार्न डाईड शर्टिंग को ग्राहकी का सपोर्ट मिल रहा है। सूटिंग में हल्का मूवमेंट है। आगे वैवाहिक सीजन होने से ब्लाउज मटेरियल की मांग धीरे-धीरे बढ़ने लगी है। व्यापारियों को लगता है कि समर के साथ वैवाहिक सीजन एक साथ होने से फिनिश कपड़ों में कारोबार सुधरेगा। गरमी के पतले कपड़ों में सुगबुगाहट बढ़ी है।
देश में पहले से ही चीन से बडे़ पैमाने पर सस्ते कपड़ों का आयात होता रहा है, जिससे स्वदेशी कपड़ा इकाइयों को कठिनाई हो रही थी। आयात एवं निर्यात को रोका नहीं जा सकता है लेकिन इसे सीमित जरूर किया जा सकता है। लेकिन अब चीन पर अमेरिका के अधिक टैरिफ लगाने से चीन का निर्यात अमेरिका में घटेगा, जबकि चीन के पास विशाल उत्पादन क्षमता है। अब तो आशंका इस बात की व्यक्त की जा रही है कि चीन अपनी विशाल उत्पादन क्षमता और झटके से बचने के लिए दूसरे मार्ग की खोज करेगा, जहां निर्यात बढ़ा सके। भारत एक बड़ा बाजार है, इसलिए चीन अपने उत्पाद को सस्ता कर भारत के बाजारों में अधिक से अधिक डम्प करने की कोशिश करेगा।
कपड़ा उद्योग सूत्रों का कहना है कि अमेरिका के टेरिफ वॉर से पूरे विश्व में हड़कम्प मच गया है। चीन की जवाबी टैरिफ वॉर से वैश्विक स्तर पर शेयर बाजारों में भूचाल आ गया और सोमवार को खुले भारत के शेयर बाजार में यह ब्लैक मंडे साबित हुआ है। लाखों निवेशकों के पैसे इसमें डूब गए, परंतु इससे अमेरिका भी अछूता नहीं रहा है। अमेरिका में शेयर बाजार न केवल लाल निशान पर रहे बल्कि अमेरिका की बड़ी कंपनियों के शेयर आठ से दश प्रतिशत तक नीचे लुढ़क गए। वैश्विक मंदी के साथ पूरी अर्थव्यवस्था के लिए यह खतरे की घंटी है। यह टैरिफ वॉर किसी एटम बम से अधिक खतरनाक बनता जा रहा है। इससे वैष्विक स्तर पर अर्थव्यवस्था चरमराने लगी है।
भारतीय कपड़ा उद्योग के लिए एक मुख्य निर्यात बाजार होने के कारण अमेरिका ने जो टैरिफ बढ़ाया है, उससे निर्यात पर असर हो सकता है। परंतु भारत पर टैरिफ अन्य देशों जैसे कि चीन, बांग्लादेश और वियतनाम की तुलना में कम होने से लाभ भी होने की संभावना है। क्योंकि अन्य देशों को ऊंची टैरिफ दर का सामना करना पड़ेगा। विश्लेशकों का कहना है कि वियतनाम के कपड़ा निर्यात पर 46 प्रतिशत तो बांग्लादेश और चीन पर क्रमशः 37 एवं 34 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया है, वहीं भारत पर 26 प्रतिशत है। भारत की जीडीपी में कपड़ा का हिस्सा दो प्रतिशत होने से भारत पर आर्थिक प्रभाव अधिक नहीं होगा वहीं अन्य देशों पर अधिक टैरिफ होने से भारत की स्थिति अच्छी है।
एक ओर टैरिफ वॉर के कारण वैश्विक स्तर पर हड़कम्प मचा हुआ है, सप्लाई चैन के बाधित होने के साथ महंगाई बढ़ने की आशंका व्यक्त की जा रही है, तो दूसरी ओर कहा जा रहा है कि भारत से अमेरिका में कपड़ों की बिक्री बढ़ सकती है। पिछले कई वर्षों से चीन, बांग्लादेश, वियतनाम, श्रीलंका जैसे देश कपड़ा क्षेत्र में भारत को कड़ी प्रतिस्पर्धा दे रहे थे, कारण कि इन देशों में मजदूरी सस्ती है और ड्यूटी के कारण जहां भारत का कपड़ा जाता था, वहां सस्ते में माल बेचकर भारत को कड़ी टक्कर दे रहे थे। अब भारत की तुलना में इन देशों पर अधिक ड्यटी लगाए जाने से अमेरिका में कपड़ों की सप्लाई करन से भारत के छोटे एवं मध्यम कद के कपड़ा उत्पादकों को लाभ होगा।
कम अवधि के लिए टेक्सटाइल क्षेत्र को चुनौती भी पेश करता है। 26 प्रतिशत टैरिफ का वास्तविक असर इससे कहीं ज्यादा हो सकता है। इस कारण अमेरिका मंे भारत के उत्पाद महंगे साबित होंगे। निर्यात मंद होने पर अधिकतर कंपनियों को कठिनाई होगी, क्योंकि बढ़े खर्च का बोझ उठाना संभव नहीं होगा। लंबी अवधि के निर्यात ऑर्डर जिन्हें पूरा करना बाकी है, वह कैंसल हो सकते है। वैश्विक सप्लाई चैन में अनिश्चितता आएगी। भारत के टेक्सटाइल उद्योग के लिए फिलहाल राह कठिन जरूर है, परंतु यह थोड़े समय के लिए है। चीन की जवाबी टैरिफ योजना से नई मुसीबत आ सकती है। परंतु सच्चाई यह है कि इस टैरिफ वॉर की शुरूआत और अमल अब होने लगा है।
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