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मुंबई/ रूई की आवक दिनों-दिन बढ़ रही है और इसी के साथ घट गई हैं कीमतें। स्पिनिंग मिलों की देसी रूई में खरीदी कम है। जिनर्स कपास की खरीदी कम भाव पर करना चाहते है। किसान कम भाव पर बेंचना नहीं चाहते है। इसलिए सीसीआई को अधिक से अधिक कपास की खरीदी किसानों से करनी पड़ रही है। सीसीआई की खरीदी का लक्ष्य कपास के भाव को स्थिर करना और किसानों को सहयोग देना है। लेकिन जानकारों का कहना है कि सीसीआई का यह कदम कपास के लिए एक बडे़ बदलाव का सूचक हो सकता है। किसान अधिक से अधिक माल सीसीआई को बेच रहे हैं, जिससे इस एजेंसी के पास इस सीजन में सबसे अधिक रूई का स्टॉक होने की पूरी संभावना है।
माना जा रहा है कि सीसीआई रूई की नई कीमत घोषित करने की तैयारी में है। रूई का भाव क्या होगा यह कई पहलुओं को ध्यान में रखते हुए तय किया जा सकता है। बिक्री रणनीति में उचित भाव और उथल-पुथल की स्थिति नहीं हो। कारण कि वैश्विक बाजारों में रूई के भाव अभी भारत की तुलना में कम है। यहीं कारण है कि रूई का हाजिर भाव पिछले तीन वर्ष के सबसे नीचे क्रम 53500 रूपये के करीब पहुंच गया है। जब तक सीसीआई कपास की खरीदी जारी रखता है, तब तक रूई के भाव और कम होने की संभावना कम दिखाई दे रही है। लेकिन बाजारों में रूई के भाव पर दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है। जिनिंग इकाइयों की खरीदी घटी तो स्पिनिंग मिलें ज्यादा लेवाल नहीं है।
सीसीआई के भाव और निजी जिनरों के भाव में प्रति क्विंटल 500 रूपये का अंतर है। बाजार में आ रहा कपास का अधिक से अधिक स्टॉक सीसीआई द्वारा खरीदा जा रहा है। सीसीआई द्वारा 52 लाख गांठ से अधिक की खरीदी की जा चुकी है। एक अनुमान है कि चालू सीजन में सीसीआई एक करोड़ गांठ से अधिक रूई की खरीदी कर सकता है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि जिनिंग इकाइयों की रूई का भाव ऊंचा होता है। लेकिन इस सीजन में अभी तक जिनिंग इकाइयां कम मात्रा में कपास खरीदी की है। इसलिए आगे चलकर रूई का बाजार पूरी तरह से सीसीआई के हाथों में हो सकता है, जबकि इस क्षेत्र में कार्यरत प्राइवेट खिलाडियों की रूचि कम भाव पर मिल रही आयातित रूई पर है।
कपास एवं रूई की यह सीजन बिल्कुल भिन्न और नई कहानी लिखने को तैयार है। देश में दशक का सबसे कम रूई उत्पादन अनुमान इस सीजन में लगाया गया है, फिर भी रूई के भाव घटते ही जा रहे हैं। कपास की दैनिक आवक दो लाख गांठ से अधिक बताई जा रही है। 120-125 लाख गांठ से अधिक रूई की आवक हो चुकी है। स्पिनिंग मिलों की रूई में लेवाली कम है। निर्यातकों की मांग कम है, क्योंकि वैश्विक बाजार में कम भाव पर रूई मिल रही है। अमेरिका, ब्राजील और ऑस्टेªलिया में रूई के भाव भारत के बाजारों की तुलना में कम है, इसलिए देश में रूई का आयात बढ़ा है। ऐसा कम देखने को मिला है कि रूई का उत्पादन भी कम हो और बाजारों में भाव सबसे निचले स्तर पर हो।