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वैश्विक फैशन उद्योग में कचरे की समस्या 
By Textile Mirror - 03-07-2025

नए कानूनों से आएगा समाधान
-कपड़ों के कचरे को रोकने के लिए अमेरिका और यूरोप में लागू हो रहे हैं सख्त नियम
दुनिया का फैशन उद्योग अब एक अभूतपूर्व बदलाव के दौर से गुजर रहा है। हर साल लगभग 92 मिलियन टन कपड़ा कचरा उत्पन्न करने वाले इस सेक्टर को अब सरकारों द्वारा कड़ी निगरानी और जिम्मेदारी के घेरे में लाया जा रहा है। अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य और यूरोपीय संघ  ने ‘विस्तारित उत्पादक’ जिम्मेदारी कानूनों को लागू करने की घोषणा की है।
ईपीआर कानून क्या हैं?
ईपीआर कानून ब्राण्ड्स और फैशन कंपनियों को इस बात की कानूनी ज़िम्मेदारी सौंपते हैं कि वे अपने द्वारा बेचे गए हर कपड़े के कचरे के प्रबंधन में योगदान दें। चाहे वह रिसाइक्लिंग हो, पुनः उपयोग, या उचित निपटान।
‘‘फैशन उद्योग में सर्कुलर इकोनॉमी लाने का यह पहला ठोस कदम है’’ कैलिफोर्निया पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के अधिकारी ने कहा।
महत्वपूर्ण तथ्य-
-ईयू प्रस्ताव के तहत ब्रांड्स को प्रत्येक उत्पाद पर ‘क्लॉथ टेक्स’ देना होगा, जिससे रिसाइकलिंग सिस्टम को वित्त पोषण मिलेगा।
-कैलिफोर्निया में सभी बड़े फैशन ब्रांड्स को कपड़ा कचरे की रिपोर्टिंग, वापसी-प्रणालियाँ और रिसाइक्लिंग लक्ष्यों को लागू करना अनिवार्य होगा।
-यह पहल वैश्विक कंपनियों जैसे कि एचएण्डएम, जारा, शीन, नाइक आदि को प्रभावित करेगी।
क्यों जरूरी है यह कानून?
-केवल 1 प्रतिशत वस्त्र ही पूरी तरह से रिसाइकल हो पाते हैं।
-फास्ट फैशन ब्रांड्स हर साल अरबों कपड़े बनाते हैं, जो महीनों में लैंडफिल या समुद्रों में पहुँच जाते हैं।
-अफ्रीका और एशिया के कई देश, जिनमें भारत भी शामिल है, अब ‘पश्चिमी कपड़ा कचरे के डम्पिंग ग्राउंड’ बनते जा रहे हैं।
भारत और अन्य विकासशील देशों के लिए संदेश-
ये कानून भारतीय फैशन और टेक्सटाइल उद्योग के लिए चेतावनी भी हैं और अवसर भी। अब सस्टेनेबल फैब्रिक्स, रिसाइक्लिंग टेक्नोलॉजी और सर्कुलर फैशन मॉडल अपनाने का समय आ गया है।
भारतीय फैशन काउंसिल की एक वरिष्ठ सदस्य के अनुसार-
‘‘अगर भारतीय ब्रांड ईपीआर जैसे कानूनों की तैयारी पहले से करें, तो वे वैश्विक प्रतिस्पर्धा में एक कदम आगे रहेंगे।’’
अगले कदम-
-यूएन फैशन चार्टर के तहत 2030 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 50 प्रतिशत कटौती का लक्ष्य।
-एशिया में भी ईपीआर नीति प्रारूप पर चर्चा शुरू।
-उपभोक्ताओं में जागरूकता फैलाने हेतु ‘स्लो फैशन’ अभियानों की योजना।

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