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धीरे-धीरे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जैसे जैसे यु( विराम के प्रयास किये जा रहे है उससे लगता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में अच्छी स्थिरता देखने को मिल सकती है। भारत का बढ़ता व्यापार घाटा अथवा भुगतान असंतुलन नहीं है। भारत के वृहत्तर स्तर पर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का भी रिकॉर्ड बना है। तो विदेश में रहकर भारत में धन प्रेषण भी तेजी से बढ़ा है। यही नहीं भारत का विदेशी मुंद्रा भंडार भी रिकार्ड स्तर पर है। लेकिन गत एक माह के दौरान विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा भारत में शु( पूंजी बाजारों में एक लाख करोड़ रुपये की बिक्री की गई है, इससे विदेश में धन का पलायन बढ़ा है। यह एक तात्कालिक समस्या है। चीन द्वारा अपनी कमजोर हो रही अर्थव्यवस्था केा पुनः पटरी पर लाने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन के प्रयास गत कुछ दिनों से तेज कर दिए है और इसी का परिणाम है कि चीन के पूंजी बाजारों में भारी तेजी देखने को मिल रही है।
विदेशी संस्थागत निवेश का विकासशील देशों से पलायन हो रहा है। उसमें भारत भी शामिल है और इसी पलायन व दबाव का कारण है कि भारतीय रूपये पर भी दबाव बढ़ा है। भारत सरकार द्वारा सोने के आयात पर आयात शुल्क को 15 प्रतिशत से घटाकर 6 प्रतिशत कर दिए जाने का भी भारतीय रूपये पर कुछ प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। सोने का आयात बढ़ा है और डॉलर की मांग निरंतर बढ़ रही है। हालांकि भारत आज जेपी मार्गन सूचकांक में सूचिब( हो गया है। इसके परिणामस्वरूप विदेशी संस्थागत निवेश का आकर्षण भारत सरकार व भारतीय कॉर्पोरेट ब्राण्ड की ओर बढ़ा है और भविष्य में इसमें और अधिक गतिशीलता आने की संभावना है। कुछ और सूचकांक भी भारतीय प्रतिभूतियों की कारोबारी गतिशीलता के कारण भारत को भविष्य में सूचिब( कर सकते है। यह सभी तथ्य निश्चित रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिरता व गतिशीलता से प्रेरित है। अतः दीर्घावधि में अथवा मध्यावधि में भारत को रूपये के विनिमय मूल्य को लेकर अथवा निवेश पलायन को लेकर अधिक चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है।
भारतीय रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा बाजार में निरंतर सक्रीय रहा है और भारतीय रुपये के विनिमय मूल्य को निर्यात प्रतिस्पर्धा क्षमता के स्तर पर संतुलित बनाए रखने का प्रयास करता रहा है। निश्चित रूप से रूपये की कमजोरी के कारण भारत के आयात महंगे हुए है। रूपये की कमजोरी के कारण आयात की लागत बढ़ी है और इसका असर देश की मुद्रा प्रसार पर भी प्रतिकूल स्तर पर अनेक उत्पादों के संदर्भ में देखने को मिला है। लेकिन यह संतोष की बात है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कमजोर आर्थिक हालात के चलते तेल के मूल्य 80 डॉलर प्रति बैरल से नीचे ही रहे है। इसमें भी भारत को करीब 30 प्रतिशत आवश्यकता का तेल रूस से और अधिक रियायती दर पर भी प्राप्त हुआ है। इसी का परिणाम है कि रूपये की कमजोरी के बावजूद भारत मुद्रा प्रसार दर को नियंत्रित रखने में सफल रहा है। क्योंकि अंतरराष्ट्रीय तेल मूल्य से व्याप्त कमजोरी से भी भारत लाभांवित हुआ है। उसकी आयात लागत नियंत्रित रही है। रिजर्व बैंक ने हर संभव प्रयास करते हुए रूपया डॉलर के विनिमय मूल्य में व्याप्त उतार चढ़ाव को नियंत्रित रखने का प्रयास किया है।
पश्चिम एशिया में इजराइल व हमास हिजबुल्ला, ईरान तनाव के बावजूद भारतीय रिजर्व बैक ने स्थानीय मुद्रा को स्थिर बनाए रखने का सफलतापर्वक कार्य किया है। रूपये की वर्तमान कमजोरी को भी भारतीय निर्यात की प्रतिस्पर्धा क्षमता के संदर्भ में सकारात्मक ही कहा जा सकता है। अब देखना यह है कि ट्रम्प यु( विराम में कितनी सक्रियता निभा पाते हैं। यदि यु( विराम होते हैं तो भारतीय अर्थव्यवस्था में जबदस्त उछाल एवं स्थिरता देखने को मिल सकती है।