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लंबे तनाव व अविश्वास के दौर से उबरते हुए भारत व चीन के बीच पुनः संवाद की शुरूआत हुई है। विश्व स्तर पर अमेरिका व उसके मित्र देश भारत को एक पारदर्शी लोकतांत्रिक देश होने के कारण अधिक महत्वपूर्ण सहयोगी के रूप में स्वीकार कर रहे है, यही कारण है कि चीन की विस्तारवादी गतिविधयों को रोकने के लिए भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान का संयुक्त क्वाड बना है। भारत आज विश्व की सर्वाधिक तेज गति से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था है और कुशल मानव संसाधन की दृष्टि से भारत किसी से पीछे नहीं है। सैकड़ों भारतीय स्टार्टअप्स के उत्पादों का उत्पादन चीन में हो रहा है। आज हर हाल से भारत रणनीतिक लाभ की स्थिति में है। यही कारण है कि भारत की अंतरार्ष्ट्रीय राजनीति में बात सुनी जाती है। चीन आज रूस के नजदीक अवश्य आ गया है। लेकिन भारत आज भी रूस का विश्वसनीय मित्र है। इस बात का प्रमाण तो अभी हाल ही में सम्पन्न ब्रिक्स समूह के सम्मेलन में भी स्पष्ट हो गया है। अमेरिका व सहयोगी देशों ने जी-7 व जी-20 में रूस यूक्रेन यु( को लेकर निंदा प्रस्ताव पारित किए है, लेकिन भारत तटस्थ रहते हुए स्प्ष्ट कर चुका है कि समस्या का कोई हल यु( अशांति नहीं है। चीन भी समझ चुका है कि उत्तर सीमा पर उसकी आक्रामकता से उसको लाभ नहीं होने वाला है।
अमेरिका भारत का विश्वसनीय मित्र केवल चीन के विकल्प के रूप में ही नहीं है, भारत का अमेरिका सबसे बड़ा व्यावसायिक साझेदार भी है। अब तक भारत की सैन्य निर्भरता सामग्री की दृष्टि से रूस पर रही थी, लेकिन अमेरिकी सहयोग से भारत सेन्य आत्म निर्भरता की दिशा में आगे बढ़ रहा है। अमेरिका को एक बड़ा विश्वसनीय सहयोग एशिया में मिल गया है, जो चीन का विकल्प बन सके और चीन की गतिविधियां पर अंकुश भी रख सके।
आज चीन को सभी मोर्चा पर संघर्ष करना पड़ रहा है। रूस के अलावा विश्व स्तर पर उसकी मित्रता किसी से नहीं है। ऐसे हालात में चीन ने भारत के साथ संबंधों को सामान्य बनाने का का प्रयास किया है। भारत के साथ सामान्य करके व अमेरिका की नई सत्ता के साथ सवंाद की शुरूआत करना चाहता है। भारत के समक्ष यह अवसर है जब वह अपने संबंध अमेरिका व चीन दोनों के साथ मजबूत बना सकता है। चीन आज के हालात में अंतरराष्ट्रीय उपेक्षा का शिकार है और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए उसको भारत व अमेरिका के साथ सहयोग को बढ़ाने की आवश्यकता भी है, क्योंकि चीन आज राजनैतिक स्तर पर भी अलग थलग पड़ा हुआ है, लेकिन चीन की विश्वसनीयता पर हमेशाा संदेह रहा है, अब तक उसने जितने भी सीमा विवाद हल के लिए भारत के साथ समझौते किए है, उनमें भारत के साथ धोखा ही किया है। लेकिन अमेरिकी सहयोग के साथ यह अवसर अवश्य है कि चीन पर अंकुश मजबूत किया जाए ताकि वह अपनी विस्तारवादी हरकतों से बाज आए, छोटे देशों को धमकाने का कार्य बंद करे। हालात ऐसे बन रहे है कि चीन को भविष्य में और उदारता के साथ व्यापार के क्षेत्र में अधिक छूट देने के लिए बाध्य होना पड़ सकता है। अर्थात न्याय संगत व्यवहार के प्रति बाध्य होना पड़ सकता है। अमेरिका में ट्रम्प की जीत एवं भारत को विश्व स्तर पर बढ़ता कदम चीन को चिंतित करने के लिए काफी है। नरेन्द्र की कूटनीतिक चालों को समझ पाना उसके लिए काफी मुश्किल होता जा रहा है।