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मुंबई/ कॉटन यार्न की सप्लाई में कोई रूकावट नहीं है। यार्न की खरीदी अपेक्षा से कम है। रूई में नरम रूख और बढे़ भाव पर कॉटन यार्न की मांग कम होने से कॉटन यार्न में स्थिरता है। स्थानीय तथा निर्यात में कपड़ों की खपत कम होने के कारण वीविंग इकाईयों में कपड़ों का उत्पादन उतनी क्षमता से नहीं हो रहा है, जितनी क्षमता से होता है। सटोरियांे के लिए भाव खींचने की संभावना नहीं है। रूई में नमी अधिक होने से दोहरा नुकसान है-एक ओर रूई का ग्रेड हल्का तो दूसरी ओर नमी का प्रमाण अधिक होने से स्पिनिंग मिलों को ऐसी रूई से यार्न की प्राप्ति कम होती है। मिलेें यार्न निर्यात के लिए करते समय रूई की कीमत, गुणवत्ता और समानता पर अधिक निर्भर है।
यद्यपि हाजिर बाजार में कॉटन यार्न के भाव में आंशिक मजबूती है। बढे़ भाव पर फिर से रूकावट आ रही है। कॉटन यार्न की मांग बढ़ने पर ही भाव में आकस्मिक तेजी निर्भर है। परंतु कॉटन यार्न की मांग अभी उस गति से नहीं बढ़ रही है, जैसी अपेक्षा की जा रही है। जानकारों का कहना है कि कपड़ों का बहुत अधिक स्टॉक बाजारों में नहीं है, आगे एक लंबी सीजन है। फिरभी वीविंग सेंटरों पर कपड़ों का उत्पादन धीमा है। इसका कारण निर्यात पर अमेरिकी टैरिफ का असर अब कपडों के साथ यार्न की मांग पड़ती दिखाई देने लगी है। यदि सूती ग्रे और फिनिश कपड़ों की मांग में जल्दी सुधार नहीं होता है, तो ऐसी स्थिति में कॉटन यार्न की मांग नहीं बढ़ने पर रिवर्स टेªंड भी संभव है।
पिछले कुछ वर्षों में कृत्रिम अथवा मानव सर्जित रेशों के भाव स्थिर रहे है अथवा इनके भाव घटे है। इनमें क्रूड आयल के भाव, पोलिएस्टर, एक्रेलिक और नायलोन जैसे कृत्रिम रेषों का उत्पादन, इनमें प्रयुक्त होते कच्चे माल के भाव में एक तरह से स्थिरता दिखाई दी है और कुछ मामले में थोडी गिरावट देखी गई है। कहने का तात्पर्य यह है कि प्रतिस्पर्धी रेशों के भाव की तुलना में रूई के भाव बढ़ने के बदले में कम होने के कारण कॉटन यार्न की मांग और भाव दोनों पर एक तरह से नियंत्रण लगा रहा है। इतना ही नहीं कॉटन यार्न का निर्यात भी घटा है। इसलिए स्पिनिंग मिलें स्थानीय और निर्यात मांग का संतुलन बनाकर ही कॉटन यार्न की बाजार में आपूर्ति सुनिश्चित कर रही है।
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